Sunday, May 5, 2013

खट्‍टी चटनी-जैसी माँ....................निंदा फाज़ली




बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्‍टी चटनी-जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा, फुकनी-जैसी माँ

बान की खुरीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थक‍ी दोपहरी-जैसी माँ

चिडि़यों की चहकार में गूँज़े
राधा-मोहन, अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी-जैसी माँ

बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी-सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी -जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की-जैसी माँ। 


--निंदा फाज़ली

पढ़िये और सुनिये भी..........

9 comments:

  1. बहुत बढ़िया रचना पोस्ट की है आपने...!

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  2. माँ के रुप अनेक..सुन्दर गीत..आभार यशोदा जी

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  3. खुबसूरत अभिव्यक्ति
    कही मेरे बारे में तो नहीं था (*_*) :P
    हार्दिक शुभकामनायें

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यति.......!!

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  5. बहुत सुन्दर. निदा साब को खुद की आवाज़ में आमने सामने सुनने भी बहुत शानदार अनुभव होता है. उनके ख़याल अपने पिता के बारे में भी बहुत बदले हैं.

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  6. माँ के लिए जितना लिखा जाए उतना कम है ।बढ़ियाँ

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  7. इतनी खूबसूरत गज़ल ...
    सच मिएँ माँ सामने आ जाती है ...

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  8. निदा फाज़ली जी की यह रचना " खट्‍टी चटनी-जैसी माँ" जिंतनी बार भी पढो हर बार नयी ही लगती हैं ...आपने आज ब्लॉग पर पढने का अवसर दिया इसके लिए धन्यवाद ..............

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