मै राह तुम्हारी देखते ही,
अपनी राहें सब भूल गया,
मँजिल भी तो अब तुम ही हो,
तेरे इंतजार के सिवा अब और क्या?
अंतिम साँसों की धुन पर,
ये मन बेचारा बुला रहा,
अब तो बस दिल की थमती धड़कन,
को और ना तुम धड़काओ ना।
इस राह देखते दीवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।
तुम आओ ना,तुम आओ ना......।
..........सत्यम शिवम (मेरे बाद)
अपनी राहें सब भूल गया,
मँजिल भी तो अब तुम ही हो,
तेरे इंतजार के सिवा अब और क्या?
अंतिम साँसों की धुन पर,
ये मन बेचारा बुला रहा,
अब तो बस दिल की थमती धड़कन,
को और ना तुम धड़काओ ना।
इस राह देखते दीवाने की जिद है,
अब कैसे भी तुम आओ ना।
तुम आओ ना,तुम आओ ना......।
..........सत्यम शिवम (मेरे बाद)
beautiful poem
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर
एक ब्लॉग सबका '
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े-
क्या यह गणतंत्र है?
क्या यही गणतंत्र है
bahut hi achi rachna....mano dil se nikli ho pukaar.....tum aao na....tum aao na...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteगहन भाव.... बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteबसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।
बहुत ख़ूबसूरत , आभार.
ReplyDeletenice posting
ReplyDeletemake your blog more beautiful
gahan prateeksha ke swar ....nishchay hi prabhavshali ...sundar rachana ke liye badhai.
ReplyDeleteबहुत मीठी पुकार!
ReplyDeleteमै राह तुम्हारी देखते ही,
ReplyDeleteअपनी राहें सब भूल गया,
मँजिल भी तो अब तुम ही हो,
तेरे इंतजार के सिवा अब और क्या?
मन तो एक ही होता है ,दस बीस तो नही । आपकी कविता मन के संबेदनशील तारों को झंकृत कर गई । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद । .