Saturday, October 25, 2025

डर क्यूँ

 



मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यों डर रखूँ
जिंदगी आ, तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ
जिसमें माँ और बाप की सेवा का शुभ संकल्प हो
चाहता हूँ मैं भी काँधे पर वही काँवर रखूँ
हाँ, मुझे उड़ना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं
अपने सच्चे बाजुओं में इसके-उसके पर रखूँ
आज कैसे इम्तहाँ में उसने डाला है है मुझे
हुक्म यह देकर कि अपना धड़ रखूँ या सर रखूँ
कौन जाने कब बुलावा आए और जाना पड़े
सोचता हूँ हर घड़ी तैयार अब बिस्तर रखूँ
ऐसा कहना हो गया है मेरी आदत में शुमार
काम वो तो कर लिया है काम ये भी कर रख रखूँ
खेल भी चलता रहे और बात भी होती रहे
तुम सवालों को रखो मैं सामने उत्तर रखूँ

कुँअर बेचैन

Thursday, October 23, 2025

छठी के परव पावन खूब सुन्दर भईल

 छठी के परव पावन

घटवा पे डूबी उगल बढ़ल जाला,
पनिया में जहर माहुर बितुरल जाला |
सुनी न लोगी
छठी के दिन आइल 
घटवा के दुबिया गढ़ी
पनिया के साफ़ करिल |

खरना के दिनवा निजका आवल जाला
अरगा के बेरा हाली निजकल जाला|
फल दौरा सुपलिया
ईंखवा के साजल जाइल
चंदनी से कोसी 
सुन्दर ढाकल जाईल |


मनवा में हरषी हरषी भूखल जाला
आदित के भोरे सांझी अरगी जाला|
सुनी ना, सूरज देव
जल्दी जल्दी उग गईल
छठी के परव पावन
खूब सुन्दर भईल|

स्वाति वल्लभा राज

इस रचना के बाद स्वाति जी ने लिखना बंद कर दिया

Saturday, October 18, 2025

बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री। व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है

अच्छी थी, पगडंडी अपनी
अच्छी थी, पगडंडी अपनी
सड़कों पर तो, जाम बहुत है।।

फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो।
सबके पास, काम बहुत है।।

नहीं जरूरत, बूढ़ों की  अब।
हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है।।

उजड़ गए, सब बाग बगीचे।
दो गमलों में, शान बहुत है।।

मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं।
कहते हैं, जुकाम बहुत है।।

पीते हैं, जब चाय, तब कहीं।
कहते हैं, आराम बहुत है।।

बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री।
व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है।।

आदी हैं, ए.सी. के इतने।
कहते बाहर, घाम बहुत है।।

झुके-झुके, स्कूली बच्चे।
बस्ते में, सामान बहुत है।।

नहीं बचे, कोई सम्बन्धी।
अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है।!

सुविधाओं का, ढेर लगा है।
पर इंसान, परेशान बहुत है।।

Wednesday, October 15, 2025

आज लगा है क्यों वह कंपने देख मौन मरने वाले को?

अरे कही देखा है तुमने