Friday, August 14, 2020

आज की दास्तां हमारी है ...गुलज़ार

शाम से आज सांस भारी है
बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

रात को दे दो चांदनी की रिदा
दिन की चादर अभी उतारी है

शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन में तारी है

कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्तां हमारी है

-गुलज़ार

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