Sunday, August 16, 2020

ज़मीं से क्यूँ उजाला जा रहा है ...डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी

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ये किस सांचे में ढाला जा रहा है ।
मेरे हक़ का निवाला जा रहा है ।।

मुनाफ़ा जिनसे हासिल था उन्हीं का ।
निकाला अब दिवाला जा रहा है ।

अज़ब है ये तुम्हारी मीडिया भी ।
हमेशा सच को टाला जा रहा है ।।

वतन को डस लिया वो सर्प देखो ।
जिसे ग़फ़लत में पाला जा रहा है ।।

गुनाहों को छुपाने के लिए क्यूँ ।
यूँ पर्दा ख़ूब डाला जा रहा है ।।

यहाँ नीलामियों का दौर साहब ।
वतन कैसे सँभाला जा रहा है ।।

तरक़्की कर लिया है मुल्क ने अब ।
शिगूफा यह उछाला जा रहा है ।।

किसी जमहूरियत की ही जुबाँ पर।
लगाया रोज़ ताला जा रहा है ।।

फ़रेबी शम्स तू कुछ तो बता दे ।
ज़मीं से क्यूँ उजाला जा रहा है ।।

-डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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