रात के पिछले पहर मैंने वो सपना देखा
खिलने से पहले, कली का वो मसलना देखा
एक मासूम कली, कोख में मां के लेटी
सिर्फ गुनाह कि नहीं बेटा, वो थी इक बेटी
सोचे बाबुल कि जमाने में होगी हेटी
बेटी आएगी पराए धन की एक पेटी
सुबह-सांझ बाबा का बेटा-बेटा रटना देखा
तन्हा मां के तब कलेजे का यूं फटना देखा
दादी चाहे कि एक पोते की ही दादी वो बने
दादा चाहे कि मेरे वंश में, बेटी न जने
मां की मजबूरी, कि बिनती वो उल्टी ही गिने
जां बचाने को कायरता में, हाथ खून ने सने
खुद की लाचारी में एक मां का कलपना देखा
आंखों से अश्क नहीं खून का टपकना देखा
बेईमानी से उसे कोख में पहचाना गया
फिर किसी जख़्म की मानिंद कुरेदा भी गया
अनगढ़े हाथों को, पैरों को कुचल काटा गया
नैनों को, होंठो को, गालों को नोंचा भी गया
कितना आसान है, बेटी का यूं मरना देखा
कोख में कत्ल हुई, बेटी का तड़पना देखा
क्या मिला तुमको, बताओ ऐ जमाने वालों
बेटे को बेटी से बेहतर बताने वालों
किसी की मजबूर-सी मां को यूं दबाने वालों
लम्हा-लम्हा किसी के प्राण मिटाने वालों
किसी सीता का फिर अग्नि से, गुज़रना देखा
द्रौपदी-सा किसी का दांव पे लगना देखा
सबने खुदगर्जी में बस मतलब देखा
कैसे बर्बाद, वतन होगा ये अपना देखा
-शकुंतला सरुपरिया
“Write it on your heart that every day is the best day in the year.” “Being miserable is a habit; being happy is a habit; and the choice is yours.” Suprabhat~-
ReplyDeleteसटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteविचारोत्तेजक कविता. शकुंतला सरूपरिया बधाई की पात्र हैं.
ReplyDeleteविचारोत्तेजक कविता. शकुंतला सरूपरिया बधाई की पात्र हैं.
ReplyDeleteसबकुछ दीखते हुए भी कुछ नहीं दीखता ..बिडम्बना है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ......
आपको नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत अच्छी कविता
ReplyDeleteनव वर्ष की मंगलकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in
PRERAK RACHNA
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