घुंघट उठाकर देखा सृष्टि यूहीं खोलकर किताब ज्ञान हुआ
पन्ने पलट-पलटकर हौले-हौले विद्वान हुआ...
लगाव हुआ था बचपन से ही, बातें सिखी किताबों से निराली
तरक्की की गहराई में डूबने लगा, गाने लगा किस्मत की कव्वाली...
आखिर किताबों की तब्दील से हुई विद्या से गहरी पहचान
विद्या की वृद्धि के आकर्षण से दिलोदिमाग में छा गई इम्तिहान ...
अध्ययन, तर्क-वितर्क, कद्र किए संपादक बना हैं दिमाग
कमाई की सबब बनी किताब, बना जीवन प्रज्वलित चिराग
-गिरधर गांधी
दिनांक 12/01/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
बढ़िया।
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