Tuesday, April 9, 2013

क़ज़ा जब मेरा पता पूछने आई ...........नीलू प्रेम

जाने कितने ख़त लिखे मैंने तेरी याद में
एक तू है जिसे पढने की फुर्सत नहीं है

एक अरशा हो गया तेरा शहर छोड़े हुए
और तुझे खबर लेने की फुर्सत नहीं है

जालिम ना कहूँ तो क्या कहूँ तुझे
रफाकत करता है निभाने की फुर्सत नहीं है

दोस्ती मेरी जैसी ना मिलेगी जमाने में तुझे
मै हर फर्ज अदा करती हूँ तू कह फुर्सत नहीं है

क़ज़ा जब मेरा पता पूछने आई ,उसने कहा
वो "प्रेम" है मेरी तू जा अभी,अभी फुर्सत नहीं है 

--नीलू प्रेम

neelu.prem@facebook.com
 


16 comments:

  1. दोस्ती मेरी जैसी ना मिलेगी जमाने में तुझे
    मै हर फर्ज अदा करती हूँ तू कह फुर्सत नहीं है
    --------------------------------
    दिल का दर्द भी और मन का फर्ज भी ....जो देखना है ..देख लो ..मगर देख लो ......

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    LATEST POSTसपना और तुम

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  3. vaah vaah vaah bahut khoobsoorat rachana man ko bha gayi

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  4. Dr Swarupchandra jee aapka bahut bahut shukriya evm abhar,,,,,,,jo aapne meri kavita ko mangalwariy charch ka vishay banaaya .........abhar

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  5. Dr. Monika jee hirdhay se apka shukriya abhar

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. बहुत ही सुन्दर उम्दा प्रस्तुति,आभार.

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  8. kuldeep jee bahut bahut shukriya apka ,,,,,,,,intjar karungi ,,,,,,,,,

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  9. Rajendera Kumar jee apka bahut bahut abhar

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  10. बहुत सुन्दर नज़्म लिखी है आपने। आज के इंसान को फुर्सत ही तो नहीं है। फुर्सत हो तो कितने दर्द कम हो जाएं।
    बधाई आपको!

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  11. बहुत सुंदर रचना .....सब अपनी अपनी भाग दोड़ में व्यस्त है....

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  12. आपकी यह सुन्दर रचना निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.com) पर लिंक की गयी है और शनिवार दिनांक 13-4-2013 के अंक में प्रकाशित की जाएगी। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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  13. जाने कितने ख़त लिखे मैंने तेरी याद में
    एक तू है जिसे पढने की फुर्सत नहीं है.....बेहद ही खूब वाह !!

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