
लरज़ती धूप में पेड़ों के साये,
ग़ज़ल मेंहदी हसन जैसे सुनाये.
हसरतें यूँ हुईं अपनी की जैसे,
नशेमन से कोई चूल्हा जलाये.
ग़मों का बोझ ढोया इस तरह भी,
पिता बेटे की ज्यों मय्यत उठाये.
हमारी नींद में ख़्वाबों का बच्चा,
पतंगे दर्द की छत पर उडाये.
शहर में जिस तरह कर्फ्यू लगा हो,
किसी की याद में दिन यूँ बिताये.
हैं दिल के सामने हालात ऐसे,
ये मुमकिन है समंदर सूख जाये.
--सुरेन्द्र चतुर्वेदी
ग़ज़ल मेंहदी हसन जैसे सुनाये.
हसरतें यूँ हुईं अपनी की जैसे,
नशेमन से कोई चूल्हा जलाये.
ग़मों का बोझ ढोया इस तरह भी,
पिता बेटे की ज्यों मय्यत उठाये.
हमारी नींद में ख़्वाबों का बच्चा,
पतंगे दर्द की छत पर उडाये.
शहर में जिस तरह कर्फ्यू लगा हो,
किसी की याद में दिन यूँ बिताये.
हैं दिल के सामने हालात ऐसे,
ये मुमकिन है समंदर सूख जाये.
--सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteनवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeletevah kya bat hai,
ReplyDeletewaaah waaah bhot khub bhot khub
ReplyDeleteadbhut rachna...
ReplyDelete