Friday, April 19, 2013

हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है......चरण लाल

 
आपने चाँद सितारों पर ग़ज़ल लिखी है
हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने फूल और कलियों के कदम चूमे हैं
हमने उजड़े हुए खारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने शहर को आदर्श बनाया अपना
हमने गाँव के बेचारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने सागर के उफनते हुए यौवन को सराहा
हमने तो शांत किनारों पर ग़ज़ल लिखी है

खा रहे नोच कर इंसान की बोटी जो "चरण"
आपने उन गुनाहगारों पर ग़ज़ल लिखी है

जिनकी आदत है हँसीं जिस्म का सौदा करना
आपने उनके इशारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है

आपका ध्यान है धनवान की डोली की तरफ
हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है

मेरी गजलों में यह पैनापन क्यों
क्योंकि तलवार की धारों पर ग़ज़ल लिखी है .
"चरण"

4 comments:

  1. आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
    हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है

    Waah...Bahut Umda

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  2. उम्दा जिनकी आदत है हँसीं जिस्म का सौदा करना
    आपने उनके इशारों पर ग़ज़ल लिखी है

    आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
    हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है

    आपका ध्यान है धनवान की डोली की तरफ
    हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है

    मेरी गजलों में यह पैनापन क्यों
    क्योंकि तलवार की धारों पर ग़ज़ल लिखी है .

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