निज टूटे हुए दिल ले, सभी मेरे पास आते हैं।
हम जोड़ेगे इसे ठीक से, लिए विश्वास आते हैं।
भरी है टोकरी दिल के, टुकड़े से यहां देखो,
इन्हीं टुकड़ों को ले मायुस, बड़ी उदास आते हैं।
जुटाकर दिल के टुकड़े को,सजाये हैं करीने से,
न कोई उल्टा-सीधा हो, यही एहसास आते हैं।
इसे रख सामने अपने, मरम्मत करने बैठे हैं,
मगर ये तो बड़े घायल,गुमे-हवास आते हैं।
लगाते हम हैं जब टांके,लहू इनसे टपकते हैं,
जो इनसे गिरते हैं लोहू, नहीं हमें रास आते हैं।
जोड़े ये नहीं जुटते ,भला कैसे इन्हें छोड़े,
खुदा भी हैं, तो क्या हैं हम,हो निराश जाते हैं।
अगर जुटते ये हमसेे,तो हम भी जोर कुछ करते ,
सभी जाते खुशी मन से,जो हो उदास आते हैं।
मनुज तुझसे है मिन्नत अब, किसी का दिल नहीं तोड़ो,
तुम अपने दिल में यह सोचो,ये मुद्दे खास आते हैं।
-सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
आवाक हूँ
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह!!! क्या बात है करीने से रचा।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबिलकुल सही!
ReplyDeleteये मुद्दे खास आते हैं।
अति सुन्दर, शब्दों की गुंथन।