ठोकर लगाकर जा रहे हो
दिल को पत्थर जान कर
जान भी लेजा मेरी
एक छोटा सा एहसान कर
मुझको कया दिखलाते हो
एहद ओ वफा के दायरे
आया हूँ मैं सैंकडों
गोलियों की खाक छान कर
हम वतन से आज भी
उम्मीद-ए-वफा रखता हूँ
दे रहा हूँ खुद को धोका
खुद को नादाँ मानकर
ओस का उनको कभी
एहसास भी होता नहीं
शाम होते ही जो सो ~
जाते है चादर तानकर
बेवफाई के हर एक
फन से हमे आगाह कर
"नूर " अपनी बात कर
या उनकी बात बयान कर
- नुरूलअमीन "नूर "
बढ़िया ।
ReplyDelete