Sunday, August 4, 2013



मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता है
हुकूमत के इशारे पे तो मुर्दा बोल सकता है

यहाँ पर नफ़रतों ने कैसे कैसे गुल खिलाये हैं
लुटी अस्मत बता देगी दुपट्टा बोल सकता है

हुकूमत की तवज्जो चाहती है ये जली बस्ती
अदालत पूछना चाहे तो मलबा बोल सकता है

कई चेहरे अभी तक मुँहज़बानी याद हैं इसको
कहीं तुम पूछ मत लेना ये गूंगा बोल सकता है

बहुत सी कुर्सियाँ इस मुल्क में लाशों पे रखी हैं
ये वो सच है जिसे झूठे से झूठा बोल सकता है

सियासत की कसौटी पर परखिये मत वफ़ादारी
किसी दिन इंतक़ामन मेरा गुस्सा बोल सकता है

-मुनव्वर राना


श़ायर ज़नाब मुनव्वर राना
उर्दू साहित्य की दुनिया में मुनव्वर राणा एक आधार स्तम्भ हैं  
उनकी नज्मों व ग़ज़लो को लोगों ने हाँथो-हाँथ लिया
श्री राणा ने उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जन्म लिया एवं
उन्होंनें अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा कोलकाता में गुजारा

4 comments:

  1. बहुत सी कुर्सियाँ इस मुल्क में लाशों पे रखी हैं
    ये वो सच है जिसे झूठे से झूठा बोल सकता है

    बहुत शानदार गज़लकार हैं राणा साहब

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  2. बढिया, बहुत सुंदर

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