Saturday, October 22, 2022

इन आँखों ने देखी न राह कहीं ...महादेवी वर्मा

 


इन आँखों ने देखी न राह कहीं
इन्हें धो गया नेह का नीर नहीं,
करती मिट जाने की साध कभी,
इन प्राणों को मूक अधीर नहीं,
अलि छोड़ो न जीवन की तरणी,
उस सागर में जहाँ तीर नहीं!
कभी देखा नहीं वह देश जहाँ,
प्रिय से कम मादक पीर नहीं!

जिसको मरुभूमि समुद्र हुआ
उस मेघव्रती की प्रतीति नहीं,
जो हुआ जल दीपकमय उससे
कभी पूछी निबाह की रीति नहीं,
मतवाले चकोर ने सीखी कभी;
उस प्रेम के राज्य की नीति नहीं,
तू अकिंचन भिक्षुक है मधु का,
अलि तृप्ति कहाँ जब प्रीति नहीं!

पथ में नित स्वर्णपराग बिछा,
तुझे देख जो फूली समाती नहीं,
पलकों से दलों में घुला मकरंद,
पिलाती कभी अनखाती नहीं,
किरणों में गुँथी मुक्तावलियाँ,
पहनाती रही सकुचाती नहीं,
अब फूल गुलाब में पंकज की,
अलि कैसे तुझे सुधि आती नहीं!

करते करुणा-घन छाँह वहाँ,
झुलसाता निदाध-सा दाह नहीं
मिलती शुचि आँसुओं की सरिता,
मृगवारि का सिंधु अथाह नहीं,
हँसता अनुराग का इंदु सदा,
छलना की कुहू का निबाह नहीं,
फिरता अलि भूल कहाँ भटका,
यह प्रेम के देश की राह नहीं!

-महादेवी वर्मा

5 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति

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  2. मवादेवी वर्मा की बहुत सुंदर रचना शेयर करने के लिए धन्यवाद, यशोदा दी।

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  3. महादेवी वर्मा जी की यह रचना पढ़वाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सादर।

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  4. आधुनिक युग की मीरा की इस शानदार रचना के शेयर लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद यशोदा जी, आप स्‍वस्‍थ रहें,खुश रहें

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  5. महादेवी वर्मा की कालजयी रचना!!

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