
किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
झूम के आई घटा, टूट के बरसा पानी
कोई मतवाली घटा थी कि जवानी की उमंग
जी बहा ले गया बरसात का पहला पानी
टिकटिकी बांधे वो फिरते है ,में इस फ़िक्र में हूँ
कही खाने लगे चक्कर न ये गहरा पानी
बात करने में वो उन आँखों से अमृत टपका
आरजू देखते ही मुँह में भर आया पानी
ये पसीना वही आंसूं हैं, जो पी जाते थे तुम
"आरजू "लो वो खुला भेद , वो फूटा पानी

-आरज़ू लखनवी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 16 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब!!
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पंक्तियाँ लिखी है आपने। धन्यवाद। Zee Talwara
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