
लघुकथा
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"सुनो!.तुम मुन्ना को कन्हैया बना उसे लेकर जन्माष्टमी के पंडाल में चली जाना।"
अपना मोबाइल और गाड़ी की चाबी उठा वह चलने को हुआ लेकिन पत्नी ने टोक दिया..
"आप किसी जरूरी काम से कहीं जा रहे हैं क्या?"
"मेरे दोस्त ने कॉकटेल पार्टी रखा है!.मैं वहीं जा रहा हूंँ।"
"आपसे एक बात कहनी थी।"
"क्या?"
"मुन्ना ने कन्हैया बनने से इनकार कर दिया है।"
"क्यों? कल ही तो उसके लिए इतना महंगा कन्हैया वाला ड्रेस लाया हूंँ!.उसे वह ड्रेस पसंद नहीं आया क्या?"
"कह रहा है कि,.मैं कन्हैया हो ही नहीं सकता!"
"क्यों नहीं हो सकता?..मेरा राजा बेटा है वो!"
लगभग पांच-छ: वर्ष के अपने इकलौते बेटे की हर ख्वाहिश पूरी करने वाला हैरान हुआ क्योंकि वह कई बार प्यार से उसे कन्हैया ही तो बुलाता था।
"कहता है कि,.कन्हैया तो दूध-छाछ पीने वाले नंद बाबा का पुत्र था!.शराब पीने वाले का नहीं।"
पति पत्नी के बीच कुछ देर के लिए एक गहरा सन्नाटा छा गया और उस सन्नाटे को भंग करते हुए उसने गाड़ी की चाबी वापस रख दी।
-पुष्पा कुमारी "पुष्प"
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 30 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteNice Information. bhut achhi jankari di aapne.
ReplyDeletehmara blog bhi check kijie.
Ankitbadigar.com
बहुत अच्छी रचना है।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर एवं सार्थक लघुकथा....
ReplyDeleteवाह!!!
क्या गज़ब की बात कह दी इस कहानी में ...
ReplyDeleteदो टूक ...
गजब!!
ReplyDeleteअभिनव भावाभिव्यक्ति।