Tuesday, July 18, 2017

एक आदत - सी हो गई है ....चंचलिका शर्मा









अब तो 
एक आदत - सी हो गई है , 
अपने आप से कहने की ,
"थकना मना है" ......

बेशुमार 
आँसुओं को पीकर 
मुस्कुरा कर कहने की , 
"रोना मना है" ........

औरत हूँ ,
औरों के लिए ही जीना है ,
आइने में भी अपना वजूद 
"ढूँढना मना है" ............ 

- चंचलिका शर्मा

8 comments:

  1. पर अपने पर भी ध्यान ना देना,.....मना है !

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  2. बहुत सुन्दर...

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  3. बहुत सुन्दर ,आभार। "एकलव्य"

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  4. वाह ! बहुत ही सुन्दर! गागर में सागर।

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  5. लाजवाब औरत के जज्बातों को बखूबी उकेरा है

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  6. waah bahut sundar kavita, aise bhav urja se paripurn hote hain jo sakaratmak urja pravahit karten hai. naari ke bhavon ko satik ukera hai aapne..... subdar

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