Sunday, February 12, 2017

वृद्धाश्रम‌....प्रभुदयाल श्रीवास्तव



दुर्बल-निर्बल जेठे-स्याने,
वृद्धाश्रम में रहते क्यों हैं?
दूर हुए क्यों परिवारों से,
दु:ख तकलीफें सहते क्यों हैं?  

इनके बेटे, पोते, नाती,
घर में पड़े ऐश करते हैं,
और जमाने की तकलीफें,
ये बेचारे सहते क्यों हैं?  

इन सबने बच्चों को पाला,
यथायोग्य शिक्षा दी है,
ये मजबूत किले थे घर के,
टूट-टूट अब ढहते क्यों हैं?  

इसका उत्तर सीधा-सादा,
पश्चिम का भारत आना है,
पश्चिम ने तो मात-पिता को,
केवल एक वस्तु माना है। 

चीज पुरानी हो जाने पर,
उसको बाहर कर देते हैं,
इसी तरह से मात-पिता को,
वृद्धाश्रम में धर देते हैं।  

-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

5 comments:

  1. एकदम सही कहा आपने , आज जमानें का यही चलन हुआ है ,आज की पीढी़ की दुनियाँ सिमट सी गई
    है। मार्मिक रचना ।

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  2. सामाजिक बिडम्बना की मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ..

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  3. पाश्चात्य संस्कृति का असर इस कदर बढ गया।
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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