Wednesday, June 4, 2014

फिर कर लेने दो प्यार प्रिये...........दुष्यन्त कुमार


अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
 

तव स्वागत में हिलता रहता
अंतर वीणा का तार प्रिये
 

इच्छाएं मुझको लूट चुकी
आशाएं मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियां
मेरे हाथों से टूट चुकी
 

खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये
 
- दुष्यन्त कुमार
स्रोतः रसरंग

7 comments:

  1. pyar ki jinda ummidon ke saanth ,dushyant ji aapki rachna kaafi sunder hai.

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  2. साझा करने के लिए धन्यवाद...

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  3. खो बैठा अपने हाथों ही
    मैं अपना कोष अपार प्रिये
    फिर कर लेने दो प्यार प्रिये----
    प्रेम का शाश्वत सच --- बहुत सुन्दर
    सादर ---

    आग्रह है-- जेठ मास में--

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