Wednesday, March 20, 2013

कनखियों से देखना...............डॉ. हरीश निगम



सर्दियों का धूप सी
तुम गुनगुनी
जब कभी तुम
पास से गुजरी
सरगमों -सी
देह में
उतरी
ज्यों हवा आकर छुए
छन्दों - बुनी
कनखियों से
ही सही
देखो.............
फूल कुछ 
मुस्कान के
फेंको.
पतझड़ो - सी जिंदगी
हो फागुनी....

डॉ. हरीश निगम

3 comments:

  1. mushkurane aur dekhne ki abhivhkti ka sundar aahsas karati prastuti

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  2. कनखियों से
    ही सही
    देखो.............
    फूल कुछ
    मुस्कान के
    फेंको.
    ---------------

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  3. आभार उत्कर्ष प्रस्तुति

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    एक शाम तो उधार दो

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