Thursday, March 14, 2013

सनन्-सनन् निनाद कर रहा पवन...........विजय कुमार सिंह





 


 सनन्-सनन् निनाद कर रहा पवन
अजस्र मर्मरित हुए हैं वन सघन
न पर्ण सा बना रहे सदा सिहर-सचल
ओ मनुज बना रहे सदा सबल।

घनक/ घनक घनेरते घनेरे घन
नृत्य कर रहे निरत तड़ित चरण
मन रहे न यह कभी तेरा विकल
ओ मनुज बना रहे सदा सबल।

झरर-झरर वरिष अदिति निगल रहा
अमित अनिष्ट अग्नि ज्वाल पल रहा
सामने अड़े हुए अडिग अचल
ओ मनुज बना रहे सदा सबल

थरर-थरर कांपती वसुंधरा
तीव्र ज्वार ले उदधि उमड़ पड़ा।
हो रहे विरोध में ये जग सकल
ओ मनुज बना रहे सदा सबल

- विजय कुमार सिंह

7 comments:

  1. सामने अड़े हुए अडिग अचल
    ओ मनुज बना रहे सदा सबल
    ----------------------
    badhiya.. sundar

    ReplyDelete
  2. सुन्दर रचना ....
    बहुत सुन्दर शब्द विन्यास ....
    शुभकामनायें ....

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट!
    साझा करने के लिए आभार!

    ReplyDelete
  4. ध्वन्यात्मक शब्द चयन ने आनंदित कर दिया, वाह !!!!

    ReplyDelete
  5. वाह,क्या ध्वन्यात्मक व्यंजना है !

    ReplyDelete