Wednesday, February 27, 2013

माँ....तुम अब क्या हो......... डॉ. मधुसूदन चौबे

सुन, तू मेरी माँ नहीं, काम वाली बाई है..
शहर में मिलती नहीं, गाँव से आई है ...

कोई भी पूछे, तो सबको यही बताना..
यहाँ मत रुक, जा अन्दर चली जा ना ....

घंटी बजे तो तुरंत बहार आना है ..,
'जी' कह कर अदब से सर झुकाना है ...


मुझसे मिलने आये विजिटर्स के लिए ...,
'शालीनता' से चाय - पानी लाना है...

बहू 'मैडम' और में तेरे लिए 'सर' हूँ.
अब मैं 'पप्पू' नहीं, बड़ा अफसर हूँ..

माँ हंसी, फिर बोली मुझे मंजूर है ..,
तेरी उपलब्धि पर मुझे गुरुर है. ..


बचपन में गोबर बीनने वाला पप्पू. ...,
आज जिले का माई-बाप और हुजूर है. ..

नौकरी तो मैं वर्षों से कर रही थी ..,
गंदगी साफ़ कर, तेरी फीस भर रही थी..


दिल्ली कोचिंग का शुल्क देने के लिए ....,
में ख़ुशी-ख़ुशी 'पाप' कर रही थी ...

सुनो, बाई, जल्दी से नाश्ता लगाओ ....,
तभी 'मैडम' की कर्कश आवाज आई थी ....


वह जो धरती पर ईश्वर का विकल्प थी .....,
अपनी नियति पर उसकी आँख छलक आई थी...


- डॉ. मधुसूदन चौबे
१२९, ओल्ड हाऊसिंग बोर्ड कालोनी, बडवानी [म. प्र.]
मो.  7489012967
https://www.facebook.com/madhusudan.choubey

7 comments:

  1. एक मार्मिक और दर्द भरी रचना सच में अगर ऐसा होता है तो पपु तेरा जिन भी क्या जीना है माँ तो वो है
    भगवान के बाद जो भी कुछ देती है वो माँ ही तो देती है सच में इस समाज का ये बहुत दुर्भाग्य की बात है
    मेरी नई रचना
    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

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  2. आँखें भर आती है इस तरह की रचनाओं को पढ़कर ...

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  3. धिक्कार है ऐसे बेटो पर जो माँ को ऐसा समझते हैं.बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति.

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  4. aaj ka sach ? nahi abhi duniya itni bhi
    nirmam nahi hui hai...marmik rachna...

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  5. बड़ी खूबसूरती से नित्य प्रति घटित एक सत्य को काव्य में पिरोने का सार्थक प्रयास किया है.
    नीरज'नीर'
    www.kavineeraj.blogspot.com

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  6. सच को उजागर करने वाली रचना

    बेहद मार्मिक 🙏

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