Monday, August 20, 2012

आहट जो तुमसे होकर मुझ तक आती है....फाल्गुनी

रिश्तों की बारीक-बारीक तहें
सुलझाते हुए
उलझ-सी गई हूं,
रत्ती-रत्ती देकर भी
लगता है जैसे
कुछ भी तो नहीं दिया,
हर्फ-हर्फ
तुम्हें जानने-सुनने के बाद भी
लगता है
जैसे
अजनबी हो तुम अब भी,

हर आहट
जो तुमसे होकर
मुझ तक आती है
भावनाओं का अथाह समंदर
मुझमें आलोड़‍ित कर
तन्हा कर जाती है।

एक साथ आशा से भरा,
एक हाथ विश्वास में पगा
और
एक रिश्ता सच पर रचा,

बस इतना ही तो चाहता है
मेरा आकुल मन,
दो मुझे बस इतना अपनापन...
बदले में
लो मुझसे मेरा सर्वस्व-समर्पण....


-स्मृति जोशी "फाल्गुनी"

16 comments:

  1. एक साथ आशा से भरा,
    एक हाथ विश्वास में पगा
    और
    एक रिश्ता सच पर रचा...........
    हर आकुल मन की यही कथा व्यथा है....
    ये अफसाना तेरा भी है... मेरा भी......
    मर्मस्पर्शी रचना...................

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    1. फाल्गुनी की कलम.......
      सच मे राहुल कभी-कभी रुला भी देती है
      आभार

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  2. यही तो स्त्री प्रेम है अपनत्व पर सबकुछ
    समर्पित कर देती है...
    मन को छु लेनेवाली रचना...

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    1. आभारी हूँ रीना बहन
      धन्यवाद

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  3. बस इतना ही तो चाहता है
    मेरा आकुल मन,
    दो मुझे बस इतना अपनापन...
    बदले में
    लो मुझसे मेरा सर्वस्व-समर्पण....

    शानदार पंक्तियाँ


    सादर

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  4. एक साथ आशा से भरा,
    एक हाथ विश्वास में पगा
    और
    एक रिश्ता सच पर रचा,

    बस इतना ही तो चाहता है
    मेरा आकुल मन,....वाह यशोदाजी ....यही तो रिश्तों का सार है ...बहुत सुन्दर !!!!

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    1. शुक्रिया सरस बहन
      सादर

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  5. यह कविता संबंधों की जड़ की बात करती है. बहुत सुंदर कविता.

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    1. मैं मात्र पाठिका हूँ
      वैसे स्मृति बहन के कलम का मुरीद हूँ
      आभार आपका
      सादर

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  6. बस इतनी सी चाहत .....वही पूरी नहीं हो पाती .... सुंदर अभिव्यक्ति

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  7. akhir ki chand panktiyan chu gayi man ko....jo ye itni si chahat hai wahi puri nahi hoti......

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