Sunday, August 18, 2024

द्वार पर एक बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था: मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। "अंधेरे में संवाद" !

 


"अंधेरे में संवाद"

जन्मदिन का उपहार

सुभाष (मेरे पति) ने सुबह ही कहा - 

"आज कुछ बनाना नहीं। लंच के लिए हम बाहर चलेंगे। 

तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी ट्रीट मिलेगी।"

16 साल हो गए हमारी शादी को, मैं सुभाष को बहुत अच्छे से जानती हूँ।

दोनों बच्चे शाम 4 बजे स्कूल से लौटेंगे; यानी लंच पर
मैं और सुभाष ही जाएंगे और 

बच्चों के आने से पहले लौट भी आएँगे।

एक नए बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची।

पाँचवीं मंजिल पर खाने पीने के ढेरों स्टॉल्स थे।
फाइनली एक बंद द्वार पर हम पहुँचे। 

द्वार पर एक बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था:

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।

"अंधेरे में संवाद" !

ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ?

बड़ा विचित्र लग रहा था सब कुछ।

अगले मोड़ के बाद इतना अंधेरा हो गया कि,
मैंने सुभाष का हाथ पकड़ लिया और 

फिर शायद हम एक हॉल में पहुँचे।

एक सूट बूट धारी आदमी ने किसी को आवाज लगाई - "संपत।"

“ये आज के हमारे स्पेशल गेस्ट हैं। आज मैडम का बर्थडे है। गिव देम स्पेशल ट्रीट। 

(उन्हें विशेष सेवायें दीजिये) ऑर्डर मैंने ले लिया है,
तुम इन्हें इनकी टेबल पर लेकर जाओ।"


अब उस दूसरे आदमी संपत ने सुभाष के हाथ थामे और 

मैं सुभाष के हाथ थामे रही। 

उसने हमें टेबल पर पहुँचाया। हम बैठ गए।

मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया।

जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ?
हम खाना कैसे खाएंगे ? 

ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ?

ऐसे न जाने कितने प्रश्न मेरे दिमाग में घुमड़ रहे थे, लेकिन मुझे सुभाष पर भरोसा था; फिर टेबल पर प्लेट्स आदि सजाए जाने की आवाजें आने लगीं। वेटर्स का आना जाना समझ में आ रहा था। 

फिर वो प्लेट्स में खाना सर्व करने लगा।

"मैंने परोस दिया है। अब आप लोग शुरू कीजिए।
आपको कुछ दिखेगा नहीं; 

लेकिन मुझे विश्वास है कि, स्पर्श और खुशबू से आपको खाने में एक अलग ही आनंद प्राप्त होगा।"
किसी वेटर ने कहा।


उस घनघोर अंधेरे में मैंने रोटी तोड़ी, प्लेट में रखी सब्जी को लपेटा
और पहला निवाला लिया। 

उल्टे हाथ से मैंने प्लेट पकड़ी हुई थी; अतः प्रत्येक पदार्थ की जगह
सीधे हाथ के स्पर्श से मुझे ज्ञात हो रही थी।

और फिर, आहा... अंधेरे में भी खाने के पदार्थ तो अपने स्वाद का मजा दे ही रहे थे; लेकिन साथ ही मैं पूछ रही थी और ऐसे ही सुभाष मुझसे पूछता जा रहा, खुशबू, स्पर्श और आवाज बस यही काम कर रहे थे।

बीच बीच में संपत, सब्जियाँ या अन्य कुछ और परोस देता।

मेरा जन्मदिन, अंधेरे में लंच, एक अनोखा आनंद दे गया;
कैंडल लाइट डिनर से भी अधिक आनंददायक रहा।

"आप जब, बाहर जाना चाहें तो बताइएगा। मैं आपको बाहर छोड़ आऊँगा।" - संपत ने कहा।

तो सुभाष बोल पड़ा :
"हाँ... हाँ... अब चलो।
बिल भी तो बाहर ही पे करना है।
चलो संपत, ले चलो हमें।"

फिर संपत ने हम दोनों के हाथ थामे और हमें बाहर को ले चला।
अंधेरे हॉल से बाहर निकल हम 

दो मोड़ों के बाद प्रकाश दिखने लगा और
हम संपत का हाथ छोड़ उसके पीछे चलते रहे।


उसका आभार मानने के लिए मैंने उसे आवाज लगाई तो
संपत पलटा और मेरी ओर देखने लगा।

तब कमरे के प्रकाश में मैंने संपत का चेहरा देखा और
मेरे मुँह से हल्की चीख निकल गई क्योंकि, 

संपत की आँखों की जगह दो अंधेरे गड्ढे नजर आ रहे थे।
वो पूर्ण रूप से अंधा था।

संपत बोला - "यस मैडम ?"

मैं समझ नहीं पा रही थी कि, क्या कहूँ ? फिर मैंने कहा -
"संपत, अपनी ऐसी हालत में भी तुमने, 

हमारी खूब सेवा, इतनी बढ़िया खातिरदारी की,
मैं ये बात सारी जिंदगी नहीं भूलूँगी।"

संपत - "मैडम, आपने जिस अंधेरे को आज अनुभव किया है
वो तो हमारा रोज का ही है। 

लेकिन हमने उस पर विजय पा ली है,

We are not disabled, we are Differently Abled People...
We can lead our Life without any Problem with
all Joy and Happiness as you Enjoy...”
 

"हम विकलांग नहीं हैं, हम अलग तरह से सक्षम लोग हैं... हम अपना जीवन 

बिना किसी समस्या के पूरे आनंद और खुशी के साथ जी सकते हैं..."


बिना किसी की सहानुभूति के मोहताज; एक सशक्त व्यक्ति से आज सुभाष ने मुझे मिलवाया, 

ऐसा जन्मदिन मुझे कभी नहीं भूलेगा।

सुभाष बिल देकर मेरे पास आया। हमेशा सुभाष को उसकी फिजूलखर्ची के चिल्लाने वाली मैंने,
बिल को देखा तो मेरी नजर
बिल पर सबसे नीचे लिखे प्रिंटेड शब्दों पर ठहर गई…।

:लिखा था:

We do not accept tips, Please think of Donating your Eye's, 

which will bring light to Somebody's ’s Life. 

(हम टिप्स स्वीकार नहीं करते। कृपया अपने नेत्रदान के बारे में सोचें, जो किसी के जीवन में रोशनी ले आएगा।)

मैं निशब्द थी!

मोरल ऑफ द स्टोरी

कितनी आसानी से हम अपने जीवन की कमियों के लिए हर समय शिकायत करते रहते हैं, बिना यह विचार किये कि परमात्मा ने हमें जो कुछ दिया है, वह भी कम नहीं है। एक स्वास्थ्य शरीर के साथ हम ऐसे बहुत कुछ कर सकते हैं जो एक अपाहिज शायद नहीं कर सकते फिर भी वे हमसे अधिक सुखी और खुशहाल जीवन जीते हैं।

तो हमें किसी दूसरे के जीवन में खुशियां लाने के बारे सोचना चाहिए, बजाय इसके कि हम हमारे जीवन की कमियों के बारे में शिकायत करें।


Original Post