Wednesday, July 31, 2013

सावन मेरे................'वीर'


लौटे नहीं हैं परदेस से साजन मेरे,
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे|

अब आये हो तो दर पर ही रुकना,
पांव ना  रखना तुम आँगन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…

तेरी ये गड़गड़ाहट, तेरी ये अंगडडाईयां,
इनसे मुख्तलिफ नहीं हैं मेरी तन्हाईयां,
चाहे तो बहा ले कुछ आंसूं दामन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…

तेरी बूंदों से मेरी तिश्नगी ना मिटेगी,
तेरी कोशिशों से ये आग और बढ़ेगी|
तुझसे ना संभलेंगे तन मन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…

--'वीर' 
श्री वीरेंद्र शिवहरे 'वीर' की एक काफी पुरानी रचना

9 comments:

  1. सावन आया पिया नही आये ......।

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  2. तुम थोडे जल्दी ही आ गये सावन मेरे.... बहुत सुंदर रचना ..

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  3. बड़ी अफ़त है गर सावन आता तो वो नहीं आता है
    गर वो आ गया पहले तो सावन दगा दे जाता है

    बहुत खूब कहिन

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  4. बहुत सुन्दर मार्मिक प्रस्तुति...!

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  5. पिया नही आये, सावन भी नहिं भाए सखी री..

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  6. बहुत सुंदर रचना ..

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  7. वाह अति सुंदर

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  8. वाह बहुत खूबसूरत रचना

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  9. सावन के सभी कवि लेखक का स्वागत आभार

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