Monday, July 1, 2013

धूल मिट्‍टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा...............मुनव्वर राना




कम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
ऐसे मिट्‍टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ

जो भी दौलत थी वह बच्चों के हवाले कर दी
जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं

जिस्म पर मेरे बहुत शफ्फाफ़ कपड़े थे मगर
धूल मिट्‍टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा


भीख से तो भूख अच्छी गाँव को वापस चलो
शहर में रहने से ये बच्चा बुरा हो जाएगा

अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
परिंदों के न होने से शजर अच्‍छा नहीं लगता

धुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारख़ाने तक पहुँचता है

---मुनव्वर राणा

10 comments:

  1. वाह, बहुत सुंदर ,आभार

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन खास है १ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. आपकी रचना कल बुधवार [03-07-2013] को
    ब्लॉग प्रसारण पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
    सादर
    सरिता भाटिया

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  4. कम से कम बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
    ऐसे मिट्‍टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ

    क्या बात है, मुनव्वर राना की बहुत सुंदर गजल है ये।
    शुक्रिया यशोदा जी

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  5. उमदा प्रसतुति। बहोत अच्छी बात कही है।

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  6. जीवन की हकीकत ये गजल है ,बहुत खूब
    भारती दास

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  7. जो भी दौलत थी वह बच्चों के हवाले कर दी
    जब तलक मैं नहीं बैठूँ ये खड़े रहते हैं

    गज़ब की सोच और इतनी सरल भाषा .....कमाल हैं मुनव्वर राणा साहब का लेखन

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  8. अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
    परिंदों के न होने से शजर अच्‍छा नहीं लगता

    धुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
    ख़ुशी से कौन बच्चा कारख़ाने तक पहुँचता है
    खुबसूरत रचना ,बहुत सुन्दर भाव भरे है रचना में,आभार !

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