Wednesday, July 3, 2013

ज़माने में फकीरों का नहीं होता ठिकाना कुछ...........रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"

 
(इस ब्लाग की दो सौ पचासवीं पोस्ट)
कटी है उम्र गीतों में, मगर लिखना नहीं आया।
तभी तो हाट में हमको, अभी बिकना नहीं आया।

ज़माने में फकीरों का नहीं होता ठिकाना कुछ,
उन्हें तो एक डाली पर कभी टिकना नहीं आया।

सम्भाला होश है जबसे, रहे हम मस्त फाकों में,
लगें किस पेड़ पर रोटी, हुनर इतना नहीं आया।

मिला ओहदा बहुत ऊँचा, मगर किरदार हैं गिरवीं,
तभी तो देश की ख़ातिर हमें मिटना नहीं आया।

नहीं पहचान पाये "रूप" को अब तक दरिन्दों के,
पहाड़ा देशभक्ति का हमें गिनना नहीं आया।

-रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
फेसबुक में पोस्ट की गई रचना

15 comments:

  1. शुभप्रभात छोटी बहना
    कटी है उम्र गीतों में, मगर लिखना नहीं आया।

    सच में ?

    सार्थक अभिव्यक्ति
    हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  2. बहुत खुबसूरत रचना....

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (03-07-2013) को बुधवारीय चर्चा --- १२९५ ....... जीवन के भिन्न भिन्न रूप ..... तुझ पर ही वारेंगे हम ....में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete

  4. सम्भाला होश है जबसे, रहे हम मस्त फाकों में,
    लगें किस पेड़ पर रोटी, हुनर इतना नहीं आया।

    बहुत ही बढ़िया गजल

    ReplyDelete
  5. आभार आदरणीय-
    सुन्दर प्रस्तुति-

    ReplyDelete
  6. शास्त्री जी को पढना अपने आप मे सुखद अनुभव है। उनको पढ़ने से लगता है कि कविता हमारे आस पास है, बस उसे समझो और शब्दो में पिरो दो। खुद शास्त्री जी जितने सरल हैं उससे ज्यादा सरल उनकी रचनाएं।
    यशोदा जी आपकी ये यात्रा यूं ही जारी रहे..
    शुभकामनाएं..


    TV स्टेशन ब्लाग पर देखें .. जलसमाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
    http://tvstationlive.blogspot.in/

    ReplyDelete
  7. गजब भाव है……अद्भुत रचना…… शास्त्री को बधाई!!

    आप भी अनमोल रचनाएं खोज लाती है। 250 वी पोस्ट के लिए बधाई और ढेरों शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  8. मिला ओहदा बहुत ऊँचा, मगर किरदार हैं गिरवीं,
    तभी तो देश की ख़ातिर हमें मिटना नहीं आया।

    नहीं पहचान पाये "रूप" को अब तक दरिन्दों के,
    पहाड़ा देशभक्ति का हमें गिनना नहीं आया।
    bahut sundar aur yatharth abhivykti ....gajal ka hr sher lajbab hai.

    ReplyDelete
  9. अति सुन्दर ज़माने में फकीरों का नहीं होता ठिकाना कुछ,
    उन्हें तो एक डाली पर कभी टिकना नहीं आया।

    सम्भाला होश है जबसे, रहे हम मस्त फाकों में,
    लगें किस पेड़ पर रोटी, हुनर इतना नहीं आया।

    मिला ओहदा बहुत ऊँचा, मगर किरदार हैं गिरवीं,
    तभी तो देश की ख़ातिर हमें मिटना नहीं आया।

    नहीं पहचान पाये "रूप" को अब तक दरिन्दों के,
    पहाड़ा देशभक्ति का हमें गिनना नहीं आया।


    ReplyDelete
  10. मिला ओहदा बहुत ऊँचा, मगर किरदार हैं गिरवीं,
    तभी तो देश की ख़ातिर हमें मिटना नहीं आया।

    ...वाह! बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति....

    ReplyDelete
  11. हमेशा की तरह बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  12. शास्त्री जी दवारा सुंदर सृजन,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,आभार

    RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  13. शास्त्री जी पढ़ना एक सुखद अनुभव है
    कुछ सीखने मिलता है
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति की रचना
    सादर

    जीवन बचा हुआ है अभी---------

    ReplyDelete
  14. वाह लाजबाब रचना

    भारती दास

    ReplyDelete
  15. कटी है उम्र गीतों में, मगर लिखना नहीं आया।
    तभी तो हाट में हमको, अभी बिकना नहीं आया।

    ज़माने में फकीरों का नहीं होता ठिकाना कुछ,
    उन्हें तो एक डाली पर कभी टिकना नहीं आया।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति की रचना
    सादर

    ReplyDelete