Saturday, February 22, 2014

बूढ़ा रिक्शावाला....नवनीत नीरव


उम्र के इस ढलान पर,
जहां जिन्दगी थोड़ी तेज रफ्तार से,
बिना रुकावट के,
फिसलनी चाहिये,
उसकी जिंदगी आज भी,
रुक-रुक कर,
धीमें-धीमें,
बेदम-सी चलती है.

शहर की हरेक गली,
हर मुहल्ले से,
गुजरा है वह अनेक बार,
छोटी-छोटी खुशियां बटोरने की
खातिर,
यह दुर्भाग्य ही तो है उसका,
जो उन्हें संजो न सका आज तक.

जिन बच्चों को स्कूल तक,
पहुंचाया करता था,
जिन बाबुओं को दफ़्तर तक
छोड़ा करता था,
समय के साथ,
सबने उन्नति की,
सबने तरक़्क़ी की,
पर वह आज भी वहीं है,
उसी चौराहे पर,
किसी का इन्तजार करता हुआ,
सबसे पूछता हुआ-
बाबू कहां चलना है ?

ज़्यादा बदलाव तो नहीं देखा
मैंनें उसमें,
सिर्फ़ नाम बदल गया है,
पहचान बदल गई है,
कि जो कल तक कहलाता था
रिक्शेवाला,
अब बुलाते हैं उसे-
बूढ़ा रिक्शावाला....
-नवनीत नीरव

Sunday, February 16, 2014

अच्छी चपत........किशनलाल शर्मा


ईंट का जवाब...



 
उमेश देखो, यह लड़की कैसी है?"
शाम को उमेश के ऑफिस से लौटते ही शांता ने उसके हाथ में फोटो रखते हुए पूछा।
"सुंदर है।" उमेश ने फोटो देखते हुए पूछा- "किसकी है?"
रमा की ननद की देवरानी की बेटी है नताशा। एमए, बीएड है।
रमा ने ये फोटो तुझे दिखाने के लिए भेजी है।"मुझे दिखाने के लिए?" 
उमेश ने पूछा - "क्यों?"रमा ने अपनी ननद की देवरानी से बात कर ली है।
वह नताशा की शादी तुझसे करने को तैयार है।
"मुझसे?" शांता की बात सुनकर उमेश ने आश्चर्य से कहा- "लेकिन मैं तो विवाहित हूँ।"
"तुम अर्चना को तलाक देकर दूसरी शादी कर लो।"
"क्यों माँ?" - उमेश ने पूछा।"तुम्हारी शादी को पाँच साल होने आए,
लेकिन अर्चना अभी तक माँ नहीं बनी, वंशवृद्धि के लिए संतान का होना जरूरी है।
अर्चना संतान नहीं पैदा कर सकती है,
इसलिए उसे तलाक देकर नताशा से शादी कर लो।"
शांता ने उमेश को समझाते हुए कहा। 

 
"दीदी की शादी को तो दस साल हो गए हैं, लेकिन वह भी अभी तक माँ नहीं बनी है।
अगर औरत के लिए संतान पैदा करना जरूरी है
तो जीजाजी को भी दीदी को तलाक देकर दूसरी शादी कर लेनी चाहिए ना माँ?" 
उमेश ने शांता को जवाब दिया।
उमेश का जवाब सुनकर शांता को लगा जैसे बेटे ने बातों ही बातों में उसे थप्पड़ लगा दिया हो।
-----किशनलाल शर्मा

Thursday, February 13, 2014

कविताएं..... मन से प्रसवित होती है..........यशोदा



कितना आसान है
तोड़ना...

आदतों में शुमार है
तोड़ना...


 

तोड़े जाते हैं
विधायक और सांसद
भला होता है
दोनों का

 

पर.....
दुख होता है
तोड़े जाने का...
शब्दों को...
कितनी आसानी से
तोड़-मरोड़ डालतें हैं
ये गरीब शब्दों को
भाव ही बदल जाते हैं
शब्दों के...
तोड़े जाने के बाद

ज़रा पढ़िये ध्यान से
मूल कविता
और जोड़-तोड़ कर
बनाई कविता को
दोनों के भाव में
फर्क महसूस होगा
बिलकुल वैसा ही
जैसे....
शक्कर की मिठास और
सैकरीन की कड़ुवाहट
भरी मिठास में होता है....

एक अनुनय
कविताएं.....
मन से प्रसवित होती है
मूल रूप में ही रहने दें
-यशोदा

Sunday, February 9, 2014

तेरा ख्याल ही मुझे आया न हो कही...........सईद क़ैस


हर लहजा तेरे पाँव की आहट सुनाई दे
तू लाख सामने न हो, फिर भी दिखाई दे

आ इस हयाते दर्द को मिल कर गुजार दे
या इस तरह बिछड़ की जमाना दुहाई दे

तेरा ख्याल ही मुझे आया न हो कही
इक रौशनी सी आख से दिल तक दिखाई दे

मिलने की तुझसे फिर न तमन्ना करे ये दिल
इतने खुलूस से मुझे दागे जुदाई दे

देखे तो क़ैस लौ भी दिये की लगे है सर्द
सोचें तो गुल की शाख भी जलती दिखाई दे
 -
सईद क़ैस

सईद क़ैस
पूरा नामः मुहम्मद सईद
जन्मः 28 मई, 1927, लाहोर
 


Saturday, February 8, 2014

Why does everyone love you and hate me..........V I S H A L D A S


Death asked Life :
Why does everyone love you and hate me.
Life replied :
Because I am a beautiful Lie and you are  a  painful Truth

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Temple is a 6 letter word
Mosque is also a 6 letter word

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3 stages of Life:

Teen Age
  – Has time & energy – But no Money
Working Age
  – Has Money & Energy – But No Time
Old Age
  – Has Money & Time – But No Energy

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We are very good Lawyers for our mistakes
Very good Judge
s  for other’s mistakes

World always say – Find good people and leave bad ones.
But I say, Find the good in people and ignore the bad in them
Because No one is born perfect

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A fantastic sentence written on every Japanese bus stop.

Only buses will stop here – Not your time
So Keep walking towards your goal
 

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African Saying:
If you want to walk quick, walk alone
If you want to walk far, walk together
 
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Confident Quote:
I have not failed.

My success is just postponed.
 

x-x-x-
Entire water in the ocean can never sink 
a ship Unless it gets inside.
All the pressures of life can never hurt you unless you let  them in.
 
 
Smiles & Regards,

V I S H A L D A S
  
 
 
 



Thursday, February 6, 2014

थोड़ा सा ताम-झाम ज़रूरी सा हो गया..........सौरभ शेखर


फिर यूँ हुआ ये काम ज़रूरी सा हो गया
जज़्बात पर लगाम ज़रूरी सा हो गया

हमसाये शर्मसार मिरी सादगी से थे
थोड़ा सा ताम-झाम ज़रूरी सा हो गया

परचम उठाये फिरता मैं बेसम्त कब तलक
इक ठौर, इक मुकाम ज़रूरी सा हो गया

कुछ रोज़ मैंने ग़म को मुसलसल किया ज़लील
फिर ग़म का एहतिराम ज़रूरी सा हो गया

शेरो-सुखन से दिल तो बड़ा शाद था मगर
फ़र्दा का इंतज़ाम ज़रूरी सा हो गया

जल्वों में कुछ कशिश न तमाशों में कोई बात
अब तो नया निज़ाम ज़रूरी सा हो गया

छलके कहीं न दर्द का पैमाना देखिये
‘सौरभ’ मियां कलाम ज़रूरी सा हो गया.
सौरभ शेखर 09873866653

http://wp.me/p2hxFs-1F3

Tuesday, February 4, 2014

माँ शारदे वर दे..............संजय जोशी 'सजग "



मेरे ब्लाग की चार सौवीं पोस्ट माता रानी को समर्पित
सभी ब्लाग एवं फेसबुक के मित्रो को बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ----

----1----
बसंत ऋतु
छाई नई चेतना
भरा उल्लास

----२----
ज्ञान व कला
माँ शारदे वर दे
है जन्म दिन

-----३-----
वीणा वादिनी
है बसंत पंचमी
दे आशीर्वाद
----४----
वाणी की देवी
दोनों हाथ पुस्तक
शुभ आशीष
-----५----
माँ सरस्वती
बुद्धि की संरक्षिका
दे वरदान
-------------------

---संजय जोशी 'सजग "---

Sunday, February 2, 2014

जब देखिए बसंत तो कैसी बसंत हो.......नज़ीर अकबराबादी


जब देखिए बसंत कि कैसी बसंत हो
आलम में जब बहार की लंगत हो
दिल को नहीं लगन ही मजे की लंगत हो
महबूब दिलबरों से निगह की लड़न्त हो
इशरत हो सुख हो ऐश हो और जी निश्चिंत हो
जब देखिए बसंत कि कैसी बसंत हो

अव्वल तो जाफरां से मकां जर्द जर्द हो
सहरा ओ बागो अहले जहां जर्द जर्द हो
जोड़े बसंतियों से निहां जर्द जर्द हो
इकदम तो सब जमीनो जमां जर्द जर्द हो
जब देखिए बसंत तो कैसी बसंत हो

मैदां हो सब्ज साफ चमकती रेत हो
साकी भी अपने जाम सुराही समेत हो
कोई नशे में मस्त हो कोई सचेत हो
दिलबर गले लिपटते हों सरसों का खेत हो
जब देखिए बसंत तो कैसी बसंत हो

ऑंखों में छा रहे हों बहारों के आवो रंग
महबूब गुलबदन हों खिंचे हो बगल में तंग
बजते हों ताल ढोलक व सारंगी और मुंहचंग
चलते हों जाम ऐश के होते हों रंग रंग
जब देखिए बसंत तो कैसी बसंत हो

चारों तरफ से ऐशो तरब के निशान हों
सुथरे बिछे हों फर्श धरे हार पान हों
बैठे हुए बगल में कई आह जान हों
पर्दे पड़े हों जर्द सुनहरी मकान हों
जब देखिए बसंत को कैसी बसंत हो

नज़ीर अकबराबादी
नज़्म लिखने वाले पहले कवि
जन्मः 1740, आगरा, उ. प्र.
अवसानः 1830
(आज के रसरंग में छपी नज्म)