बाद मुद्दत उसे देखा, लोगो
वो ज़रा भी नहीं बदला, लोगो
खुश न था मुझसे बिछड़ कर वो भी
उसके चेहरे पे लिखा था लोगो
उसकी आँखें भी कहे देती थीं
रात भर वो भी न सोया, लोगो
अजनबी बन के जो गुजरा है अभी
था किसी वक़्त में अपना, लोगो
दोस्त तो खैर, कोई किस का है
उसने दुश्मन भी न समझा, लोगो
रात वो दर्द मेरे दिल में उठा
सुबह तक चैन न आया, लोगो
वो ज़रा भी नहीं बदला, लोगो
खुश न था मुझसे बिछड़ कर वो भी
उसके चेहरे पे लिखा था लोगो
उसकी आँखें भी कहे देती थीं
रात भर वो भी न सोया, लोगो
अजनबी बन के जो गुजरा है अभी
था किसी वक़्त में अपना, लोगो
दोस्त तो खैर, कोई किस का है
उसने दुश्मन भी न समझा, लोगो
रात वो दर्द मेरे दिल में उठा
सुबह तक चैन न आया, लोगो
-श़ाय़रा परवीन श़कीर
जन्म वर्षः1952
ज़न्नतनशीं वर्षः 1994
ज़न्नतनशीं वर्षः 1994
परवीन शकीर की शायरी आम जनता बीच में अच्छी तरह पढ़ी गई
सौजन्यः BESTGHAZALS
बेहतरीन ग़ज़ल.... बहुत सुंदरअभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeletewaaaaaaaaaaah bhot khub ....parvin ji ki gajle ya nazme dono padh ke sukoon milta hai.....kuch sher to mano MIRA ki trah hote hai
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,अभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल..आभार यशोदा जी
ReplyDeleteमैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
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पूर्व के कमेंट में सुधार!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
सूचनार्थ...!
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