मैं ख़याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मेरा अक्स है, पास-ए-आईना कोई और है
अजब एतबार-ओ-बेएतबारी के दरमियाँ है ज़िन्दगी
मैं करीब हूँ किसी और के, मुझे जानता कोई और है
मेरी रोशनी तेरे खाद-ओ-ख़ाल से मुख्तलिफ तो नहीं मगर
तू करीब आ तुझे देख लूं, तू वही है या कोई और है
तुझे दुश्मनों की खबर न थी, मुझे दोस्तों का पता नहीं
तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाक़ेआ कोई और है
वही मुन्सिफों की रवायतें, वही फैसलों की इबारतें
मेरा जुर्म तो कोई और था, पर मेरी सज़ा कोई और है
कभी लौट आयें तो पूछना नहीं, देखना उन्हें गौर से
जिन्हें रास्ते में खबर होई की ये रास्ता कोई और है
-श़ायर जनाब सलीम कौसर
सर-ए-आईना मेरा अक्स है, पास-ए-आईना कोई और है
अजब एतबार-ओ-बेएतबारी के दरमियाँ है ज़िन्दगी
मैं करीब हूँ किसी और के, मुझे जानता कोई और है
मेरी रोशनी तेरे खाद-ओ-ख़ाल से मुख्तलिफ तो नहीं मगर
तू करीब आ तुझे देख लूं, तू वही है या कोई और है
तुझे दुश्मनों की खबर न थी, मुझे दोस्तों का पता नहीं
तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाक़ेआ कोई और है
वही मुन्सिफों की रवायतें, वही फैसलों की इबारतें
मेरा जुर्म तो कोई और था, पर मेरी सज़ा कोई और है
कभी लौट आयें तो पूछना नहीं, देखना उन्हें गौर से
जिन्हें रास्ते में खबर होई की ये रास्ता कोई और है
-श़ायर जनाब सलीम कौसर
श़ायर जनाब सलीम कौसर का जन्म पानीपत में सन 1947 में हुआ
विभाजन का पश्चात वे पाकिस्तान मे बस गए...
विभाजन का पश्चात वे पाकिस्तान मे बस गए...
ये उनकी बेहतरीन ग़ज़लों मे एक है
स्व. जगजीत सिंह ने इस ग़ज़ल को स्वरों में बांधा है
स्व. जगजीत सिंह ने इस ग़ज़ल को स्वरों में बांधा है
bahut badhiya
ReplyDeletewaaaaaaaaaaah yhi gazal mahendi hasan ke aavaz me sunna bda mja aayega
ReplyDeleteसुन्दर-
ReplyDeleteबहुत आभार , ये गजल सुनकर बहुत अच्छा लगा,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_3.html
बहुत बढिया.
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब गज़ल है ये ... और जगजीत जी ने इथा ही खूबसूरत इसे बना दिया अपनी आवाज़ से ...
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