हमें इस घर में रहना अच्छा नहीं लगता
आंगन है, छत है, दरवाजा है, चारदीवारी है
आंगन में एक झूला भी है लटकता
फिर भी यह घर अच्छा नहीं लगता
नहलाने को, खाना देने को आंटी हैं
यूनिफॉर्म, नाश्ता, खाना, दूध
समय पर सभी है मिलता
फिर भी यह घर अच्छा नहीं लगता
समय पर सोना, समय पर उठना
समय पर स्कूल जाना और होमवर्क करना
समय पर टीवी देखने को भी मिलता
फिर भी यह घर अच्छा नहीं लगता
खेलने को खिलौने भी हैं
बहुत सारे हमउम्र दोस्त भी हैं
पर यहां नहीं हैं, मेरे माता-पिता
इसलिए यह घर हमें अच्छा नहीं लगता।
आंगन है, छत है, दरवाजा है, चारदीवारी है
आंगन में एक झूला भी है लटकता
फिर भी यह घर अच्छा नहीं लगता
नहलाने को, खाना देने को आंटी हैं
यूनिफॉर्म, नाश्ता, खाना, दूध
समय पर सभी है मिलता
फिर भी यह घर अच्छा नहीं लगता
समय पर सोना, समय पर उठना
समय पर स्कूल जाना और होमवर्क करना
समय पर टीवी देखने को भी मिलता
फिर भी यह घर अच्छा नहीं लगता
खेलने को खिलौने भी हैं
बहुत सारे हमउम्र दोस्त भी हैं
पर यहां नहीं हैं, मेरे माता-पिता
इसलिए यह घर हमें अच्छा नहीं लगता।
-श्रीमती आशा मोर
(अप्रवासी भारतीय)
(अप्रवासी भारतीय)
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बृहस्पतिवार (18-07-2013) को में” हमारी शिक्षा प्रणाली कहाँ ले जा रही है हमें ? ( चर्चा - 1310 ) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति-...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।
ReplyDeleteसुंदर भाव...
ReplyDeleteएक नजर इधर भी...
यही तोसंसार है...