अजब हैं लोग थोड़ी सी परेशानी से डरते हैं
कभी सूखे से डरते हैं, कभी पानी से डरते हैं
तब उल्टी बात का मतलब समझने वाले होते थे
समय बदला, कबीर अब अपनी ही बानी डरते हैं
पुराने वक़्त में सुलतान ख़ुद हैरान करते थे
नये सुलतान हम लोगों की हैरानी से डरते हैं
हमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
मगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
तमंचा,अपहरण,बदनामियाँ,मौसम,ख़बर,कालिख़
बहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
मगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं
-सर्वत एम जमाल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteहमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
ReplyDeleteमगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
बहुत अच्छा ......
भारती दास
सुन्दर प्रस्तुति, न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
ReplyDeleteमगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
ReplyDeleteमगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं
..यही हाल है आज का ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,यशोदा जी..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...... आभार...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति,यशोदा जी..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमुझे तो यहां बहुत अच्छा लगता है
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