हसीन फूलों की रानाइयाँ निसार करूँ
सितारे चाँद कभी, कहकशाँ निसार करूँ
बहार पेश करूँ गुलसिताँ निसार करूँ
जहाने-हुस्न की रंगीनियाँ निसार करूँ
ज़मीं निसार करूँ आसमाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ
ये सबज़ाज़ार ये बदमस्त चाँदनी रातें
ये रंग-ओ-नूर ये रानाइयों की बारातें
ये इत्र इत्र हवाएँ ये भीगी बरसातें
शबाब-ओ-हुस्न की सारी हसीन सौग़ातें
निशात-ओ-नूर में डूबा समाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ
ये मेरे ख़्वाब मेरी हसरतें मेरे अरमाँ
ये मेरा हुस्ने-तख़य्युल ये मेरा ज़ोरे-बयाँ
मेरे जहाने-ख़्यालात की मताए गिराँ
ये मेरे गीत मेरी शायरी मेरा दीवाँ
मैं अपने ज़हन की जोलानियाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ
ग़ज़ल है साज़ है या साग़र-ए-शबाब है तू
गुलों की बज़्म में खिलता हुआ गुलाब है तू
मता-ए-हुस्न है तू पैकर-ए-शबाब है तू
किसी अज़ीम म्सव्विर का एक ख़्वाब है तू
तख़ैयुलात की परछाइयाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ
मैं क्या हूँ मेरे अशआर की बिसात है क्या
मेरे ख़ुलूस मेरे प्यार की बिसात है क्या
मेरी वफ़ा मेरे ईसार की बिसात है क्या
मेरी मता-ए-दिले-ज़ार की बिसात है क्या
तेरी हसीन अदाओं पे जाँ निसार करूँ
तेरे शबाब पे सारा जहाँ निसार करूँ
-शायर मेहबूब राही
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (08-07-2013) को मेरी 100वीं गुज़ारिश :चर्चा मंच 1300 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेपनाह मोहब्बत दर्शाती उम्दा गज़ल
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
बेहतरीन ग़ज़ल बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ......!!
ReplyDeleteWaaaaaaah . Bahut khusurat . zindabad .
ReplyDeleteक्या बात है..
ReplyDeleteमेरी धरोहर ब्लाग पर आए बगैर दिन पूरा ही नहीं होता।
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteमोहब्बत और इबादत में सबकुछ निछावर हो जाता है । सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
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