लौटे नहीं हैं परदेस से साजन मेरे,
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे|
अब आये हो तो दर पर ही रुकना,
पांव ना रखना तुम आँगन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…
तेरी ये गड़गड़ाहट, तेरी ये अंगडडाईयां,
इनसे मुख्तलिफ नहीं हैं मेरी तन्हाईयां,
चाहे तो बहा ले कुछ आंसूं दामन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…
तेरी बूंदों से मेरी तिश्नगी ना मिटेगी,
तेरी कोशिशों से ये आग और बढ़ेगी|
तुझसे ना संभलेंगे तन मन मेरे|
तुम थोड़ी जल्दी ही आ गए सावन मेरे…
--'वीर'
श्री वीरेंद्र शिवहरे 'वीर' की एक काफी पुरानी रचना
सावन आया पिया नही आये ......।
ReplyDeleteतुम थोडे जल्दी ही आ गये सावन मेरे.... बहुत सुंदर रचना ..
ReplyDeleteबड़ी अफ़त है गर सावन आता तो वो नहीं आता है
ReplyDeleteगर वो आ गया पहले तो सावन दगा दे जाता है
बहुत खूब कहिन
बहुत सुन्दर मार्मिक प्रस्तुति...!
ReplyDeleteपिया नही आये, सावन भी नहिं भाए सखी री..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ..
ReplyDeleteवाह अति सुंदर
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसावन के सभी कवि लेखक का स्वागत आभार
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