Friday, October 30, 2020

चलते चलते ....नवीन कानगो

यकीन मानिए
मैं बाजार नहीं गया था
वरन् बाजार मेरे घर घुस गया
उसने बेचा मुझे बहुत कुछ
गैर-ज़रूरी
और ले गया
फ़ाख्ते
हरी घास
फुदकती गिलहरी
टिटहरी का आवाज
बगुलों का झुण्ड
फेरी वालों की पुकार
और बहुत कुछ...
कहते हैं सौदे में हमेशा 
बाजार कमाता है


-नवीन कानगो


Sunday, October 25, 2020

हुई हैं उनसे मुलाकातें ...इश्तियाक अंसारी


अभी कुछ कुछ हुआ है उजाला

पर सवेरा होना बाकी है।


अभी मिली हैं आँखें उनसे

पर दिल मिलना बाकी है।


पेड़ों के अभी कुछ कुछ पत्ते झरे हैं

पर हरियाली अभी बाकी है।


अभी तो मैंने देखा है एक चाँद

पर उससे मुलाकात अभी बाकी है।


सुसख हवा चली है कुछ कुछ

पर गर्मी आना बाकी है।


अभी दो चार हुई हैं उनसे मुलाकातें

पर अभी प्यार होना बाकी है


-इश्तियाक अंसारी 

Saturday, October 24, 2020

एक श्रृंगारिक हिंदी गज़ल ...माण्डवी


याद आते बहुत पर तुम आते नहीं,
क्या कभी हम तुम्हें याद आते नहीं।

याद में आपके दिल परेशान है,

आप तो अपना वादा निभाते नहीं।

याद आते रहे तुमको हम भी बहुत,

क्यों कभी तुम हमें यह बताते नहीं।

जान से भी वो ज्यादा मुझे चाहते,
प्यार अपना मगर वो जताते नहीं।

आपके प्यार में हम दीवाने हुए,
जानते तो हैं पर बोल पाते नहीं।
-माण्डवी




Friday, October 23, 2020

तस्वीर बोलती है __अलका गुप्ता 'भारती'


निकली ही क्यूँ ...
नंगे पाँव गोरी ।
दिखी नहीं ता पै...
धूप निगोड़ी ॥ 
नाजुक कमरिया...
थामें  गगरिया ।
रूप साजे हाय !
धारि ..कटरिया ॥
जालिम है जमाना...
ये ..नजरिया ।
संभल मग भरे...
शूल कंकरिया ॥
लद गए दिन ...
पनिहार पनघट के ।
जंचे अब ना ये ...
लटके झटके ॥

-अलका गुप्ता 'भारती' 







Wednesday, October 21, 2020

#दाग अच्छे है ...नीलम गुप्ता


 #दाग अच्छे है
दाग पर ना जा
दाग है तभी हम सच्चे है 
दाग बहुत अच्छे है
सफ़ेद कुर्ती पर लगा दाग
क्यों आंखों को नहीं भाता
इस दाग से ही तो
रचता संसार सारा
क्यों शराब खुले में
पैड काली पन्नी 
में लाए जाते
उन पांच दिनों की कीमत
क्यों लोग समझ ना पाते
रचा ब्रह्मांड उन दागों से ही
फिर क्यों उन पांच दिनों की
कोई बात नहीं करता
उन दिनों के दर्द को
कोई नहीं समझता
क्यों छुपा छुपा कर 
क्यों बचा बचा कर
इस तस्वीर में रंग भरते है
क्यों नहीं कहते
ये दाग बहुत ही अच्छे है

स्वरचित

-नीलम गुप्ता

Tuesday, October 20, 2020

अजन्मी ..विनय के. जोशी

 

जर्जर काया
पराश्रित जीवन
बुढ़ापा भरी
उस पर नारी .....

मैं कौन ?
मेरी ख्वाहिशें क्या ?
अधेड़ प्रौढ़ा
कुल की माया
नाती-पोतों की आया
उपेक्षा के बदले
वारी वारी ........

लहलहाती फसल
खनकता कुन्दन
श्रृंगारित दासी
जर जमीन जोरू
जागीरदारी ........

आदमखोर स्वछंद
मासूम कैद
संभल कर चलो
ओ नारी !
अभी हो कुंवारी ....
दूध भैया का .....
खिलौने भैया के ......
स्कूल भैया जाएगा ..........

उफ !
बहुत बुरा है,
दो पैरों का जानवर
अपनी मादा के साथ |
शुक्र है मैं मुक्त हूँ
उन्मुक्त हूँ
जीवन रहा नही
मरण वार दिया
तन तारिणी
वन्ही (अग्नि) सागर
पल में पार किया ...

सांसें लेती
लाशों ने मुझे
कोख ही मे मार दिया
-विनय के जोशी


Saturday, October 17, 2020

एक मुस्कान में बिकता हूँ... -विनय के. जोशी

भले ही नागफनी सा दिखता हूँ.
ग़ज़ल बड़ी मखमली लिखता हूँ..

क़दर नहीं, पर हासिल भी नहीं.
वैसे, एक मुस्कान में बिकता हूँ..

फूलों की खबर रूहों को देनी है
पवन हूँ, एक जगह कहाँ टिकता हूँ

कामयाब बुर्ज पर परचम तुम्हारा
मैं शिकस्तों के गांव में छिपता हूँ

यकजां आईने में अक्स बिखरा था
हुई जो किरचें, तो साफ दिखता हूँ
-विनय के. जोशी..

Friday, October 16, 2020

तस्वीर यह बोली ...अलका गुप्ता 'भारती'



मुखर हो जाएं जहाँ वाचाल मौन ।
तस्वीरें वह भला न कुरेदे कौन ॥ 

पन्ना पलटे चेहरे का हर भाव ।
देकर दगा कभी प्रीत कभी दाँव ॥

जीवन ज्यों हो मुखौटों की पुस्तक ।
मृदुल कभी नीरसता की है दस्तक ॥

अंतर्मन का है ..प्रतिबिम्ब दहकता । 
जग संग्राहलय ..यह हँसता गाता ।

दंश देते ..अवसाद विषाद.. जड़ित ।
हैं शान्ति अभिलाषी मन गहन गणित॥ 

-अलका गुप्ता 'भारती'

Thursday, October 15, 2020

नीला आसमान ...सरिता सिंह


ये जो विस्तृत नीला
आसमान देख रहे हो न?
ये मेरा है,
इसलिए नहीं कि
मैंने इसे जीता है,
इसलिए कि मैं
उड़ने का माद्दा रखती हूँ,
यही बात तुम्हें
हमेशा से चुभती रही है,
जिसकी खुन्नस 
निकालने के लिए
तुम मेरी 
उड़ान रोकने की 
कोशिशें करते रहते हो,
नाकाम कोशिशें,
कभी मेरे 
पंख कतरते हो,
कभी मुझे पिंजड़ों में
बन्द करते हो,
खुद को मनाते हो बार बार कि
अब ये छटपटाएंगी,
गिड़गिड़ाएंगी,
खुश होते हो
कतरे हुए पंख देखकर,
उनसे निकलने वाली
लहू की गंध सूंघकर,
पर तुम भ्रम में हो...
जरा अपनी जमीन पर गड़ी
नजरें उठाकर
आसमान की ओर देखो,
मैं अपने नए पंख फैलाए
आसमान की ऊंचाई
और 
तुम्हारी नीचता भी नाप रही हूँ
एक साथ,
हाँ...अब भी ये आसमान मेरा है!
-सरिता सिंह


Wednesday, October 14, 2020

तुम मूकदर्शक,मैं कामिनी ..प्रगति मिश्रा 'सधु'


तुम मूकदर्शक,मैं कामिनी
हृदय  उद्वेलक, हूँ दामिनी
तुम उज्जवल छटा,मैं कांति
दिव्यर्शन से ही आती शांति
न हिय ने पाई यह भ्रान्ति ।
तुम प्रेम हो, मैं रागिनी
तेरे सुर की हूँ मैं वादिनी।
तुम शीश हो,मैं हृदयस्थल
हृदय तार कंपित
क्षण-क्षण, पल-पल।
जीवन में ऐसे आए हो 
मानो...सोमरस से, छाए हो।
तुम चलते हो यूँ डेंग-डेंग
पग-पग तो मेरे छोटे हैं
वह क्षण जीवन में आते
जो वृन्दावनवासी  खोते हैं।
तुम निद्रा हो,मैं स्वप्न निराली
है निज सुगन्ध खुद पे भारी
यूँ कल-कल करती आयी हूँ
जीवन में तेरे छाई हूँ.... ।।

।।सधु।।

 

Sunday, October 11, 2020

आस...शैल अग्रवाल

मेघ सांवरे उमड़े, बरसेंगे
खुशियों से आंचल भर देंगे

कोपल-कोपल मुस्काई धरती
फिरसे अंखुआए अहसासों में

चितवन रस में भीगे कांपे
दूरियाँ न रहीं अब राहों मे

आकाश सिमटते देखा है इसने
फुनगियों की नन्ही-सी बाहों में।

-शैल अग्रवाल

Saturday, October 10, 2020

तुम सीमा के पार न जाना .....कौशल शुक्ला


जहाँ नहीं अधिकार न जाना।
तुम सीमा के पार न जाना।।

दीपक एक पतंगे लाखों
स्वप्न लिए परिणय की आँखों
कुछ भी हाथ नहीं आता है
मृग-तृष्णा संसार न जाना?
तुम सीमा के पार न जाना।।

सबके मन मे चंचलता है
जिसको जितना भी मिलता है
इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं
जीवन का व्यवहार न जाना?
तुम सीमा के पार न जाना।।

सुख में साथ निभाती है यह
दुःख में ऑंख दिखाती है यह
संकट के घिरते ही दुनियाँ
करती तीखे वार न जाना?
तुम सीमा के पार न जाना।।

-कौशल शुक्ला 

Friday, October 9, 2020

प्रेम ....शैल अग्रवाल

तितली वह मेरी सबसे सुंदर

सबसे चमकीले पंखों वाली


फूल-फूल इतराती फिरती

मेरी ही बगिया में आकर

मेरे ही हाथों में ना आती

बहुत प्यार करता हूँ इससे

इसने प्यार की कद्र ना जानी


आजादी है प्रेम कोई बन्धन नहीं

कहती और झटसे ये उड़ जाती। 

- शैल अग्रवाल

Thursday, October 8, 2020

स्त्री से मत कहना ....डॉ. अजित सिंह तोमर

 


स्त्री से मत कहना 

अपने मन की कोई दुविधा,कोई अप्रिय बात 

वो बाँध लेगी उसकी गाँठ 

झोंक देगी अपनी सारी ताकत 

उसे समाप्त करने में 


वो  पूछेगी बार-बार उसके बारे में सवाल 

और देगी खुद ही हर सवाल का 

एक संभावित जवाब 


किसी स्त्री से मत बताना 

अपने जीवन के दुःख 

जो रख देगी अपने सारे सुख गिरवी 

और तुम्हें दुःखों से निकालनें की करेगी 

भरसक कोशिश 


किसी स्त्री से मत बताना 

अपने डर के बारें में ठीक-ठीक कोई अनुमान 

वो इसके बाद अपने डरों को भूलकर 

तुम्हें बताएगी तुम्हारी ठीक-ठीक ताकत

 

अपने बारें में न्यूनतम बताना 

किसी स्त्री को 

बावजूद इसके 

वो जान लेगी तुम्हारे बारें में वो सब 

जो खुद के बारें नही जानते तुम भी 


स्त्री से मत पूछना 

दुःख की मात्रा 

और सुख का अनुपात 


स्त्री से मिलते वक्त 

छोड़ आना अपने पूर्वानुमान 

बचना अपने पूर्वाग्रहों से 


सोचना हर मुलाकात को आख़िरी

 

स्त्री को बदलने की कोशिश मत करना

और खुद भी मत बदलना 


स्त्री नही करती पसंद 

किसी बदलाव को बहुत जल्द 


स्त्री से कहना अपना धैर्य 

स्त्री से सुनना उसके अनुभव 

बिना सलाह मशविरा दिए 


स्त्री जब पूछे तुमसे क्या हुआ? 

कहना सब ठीक है 


वो समझ जाएगी खुद ब खुद 

कितना ठीक है और कितना है खराब.

 - डॉ. अजित सिंह तोमर...

Tuesday, October 6, 2020

करती हैं मदहोश तुम्हारी प्यारी बातें ...प्रीती श्री वास्तव


हमें परेशां करती है तुम्हारी बातें।
करती हैं मदहोश तुम्हारी प्यारी बातें।।

वो चौबारे पे खड़े होकर तकना तेरा।
और आँखों से ही कहना सारी बातें।।

कैसे भूल जाऊं मैं साथ बिताये पल।
पल दो पल में हो जाती थी सारी बातें।।

आस रहती थी ठहर जाये वक्त यही।
हो रही हो जब यूं हमसे हमारी बातें।।

नाम तेरा लेकर तसब्बुर में जिया करतें हैं।
याद आती है हमें यार तुम्हारी बातें।।

आज नशा जाम का नही इश्क का है।
गजल में लिख डाली मैने सारी बातें।।
-प्रीती श्री वास्तव

Monday, October 5, 2020

अगर चाँद मर जाता ... त्रिलोचन शास्त्री










अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब?
खोजते सौन्दर्य नया?
देखते क्या दुनिया को?
रहते क्या, रहते हैं
जैसे मनुष्य सब?
क्या करते कविगण तब?
प्रेमियों का नया मान
उनका तन-मन होता
अथवा टकराते रहते वे सदा
चाँद से, तारों से, चातक से, चकोर से
कमल से, सागर से, सरिता से
सबसे
क्या करते कविगण तब?
आँसुओं में बूड़-बूड़
साँसों में उड़-उड़कर
मनमानी कर- धर के
क्या करते कविगण तब
अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब

- त्रिलोचन शास्त्री  

Saturday, October 3, 2020

मुक़द्दर एक सा किसका हुआ है ...प्यासा अंजुम

1222,1222,122. 
मुफ़ाईलुन,मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन। 
बहरे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

सभी कहते हरिक घर में ख़ुदा है।
हमारा सर तभी  हर दर झुका है।।

झुका सज़दे में सर है जिस भी दर पे।
सभी के  ही लिए  मांगी  दुआ है।।


ख़ुदा के बंदों से  कर लो मुहब्बत।
इबादत करने की यह भी अदा है।।


सभी को एक ही मंज़िल मिलेगी।
सफ़र  चाहे किया  सबने जुदा है।।

लिखा जाए जुदा सबका नसीबा।
मुक़द्दर एक सा किसका हुआ है।।

है दर किसका हमें क्या लेना देना।
हमें बस चाहिए सबका भला है।।

जुदा चाहे फ़लक के सब हैं"अंजुम"।
मगर इक सी लगे सबकी ज़िया है।।
-
-प्यासा अंजुम

Thursday, October 1, 2020

कुछ ठोकरें उसको अभी खाने तो दो ..डॉ. नवीन त्रपाठी

 

2122 2122 2122 212

रफ़्ता  रफ़्ता  खुशबुएँ  घर  मे  बिखर जाने तो दो ।
कुछ  हवाओं को  मेरे आंगन तलक आने तो  दो ।।

रोक   लेंगे  मौत  का  ये  कारवां  हम   एक  दिन।
इस   वबा   के  वास्ते   कोई   दवा  पाने तो  दो ।।

सच बता देगा जो  मुज़रिम  है  मुहब्बत का यहाँ।
उसकी आँखों में अभी थोड़ा नशा  छाने  तो दो ।।

दर्दो  ग़म  के  दौर  से  गुज़री  है  उसकी  ज़िंदगी ।
चन्द लम्हे ही सही अब दिल को बहलाने तो  दो ।।

ये ज़माना खुद समझ  लेगा  सनम  की  ख्वाहिशें ।
स्याह  जुल्फें  अरिज़ो  पर उनको  लहराने  तो दो।।

टूट कर भी  वो  बदलता है  कहाँ  अपना  बयान ।
आइने को सच किसी महफ़िल में बतलाने तो दो ।।

सारी यादें  फिर  जवां  हो  जाएंगी  तुम  देखना ।
गीत  जो  मैंने  लिखा था  बज़्म  में  गाने तो दो ।।

ज़िंदगी  की  हर  हक़ीक़त  से वो  होगा  रुबरू ।
इश्क़ में कुछ ठोकरें उसको अभी खाने  तो  दो ।।

-डॉ. नवीन त्रपाठी