हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है'?
तुम्ही कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है
न शोले में ये करिश्मा न बर्क में ये अदा
कोई बताओ कि वोह शोख-ए-तुंदखू क्या है
ये रश्क है कि वोह होता है हमसुखन तुमसे
वगर न खौफ-ए-बद-आमोज़ी-ए-उदू* क्या है
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैरहन
हमारे जेब को अब हाजत-ए-रफू क्या है
जला है जिस्म जहां, दिल भी जल गया होगा!
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तुजू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं काएल
जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
*उदू - दुश्मन
तुम्ही कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है
न शोले में ये करिश्मा न बर्क में ये अदा
कोई बताओ कि वोह शोख-ए-तुंदखू क्या है
ये रश्क है कि वोह होता है हमसुखन तुमसे
वगर न खौफ-ए-बद-आमोज़ी-ए-उदू* क्या है
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैरहन
हमारे जेब को अब हाजत-ए-रफू क्या है
जला है जिस्म जहां, दिल भी जल गया होगा!
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तुजू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं काएल
जब आँख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
*उदू - दुश्मन
असदुल्लाह खाँ 'गालिब ' सन् 1797 आगरा में जन्में...वे मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की अदालत में भी आपनी उपस्थिति दर्ज करवाई.....
आपका निधन सन् 1869 में हुआ
यह ग़ज़ल सौजन्यः बेस्ट ग़ज़ल
यह ग़ज़ल सौजन्यः बेस्ट ग़ज़ल
उत्कृष्ट कृति-
ReplyDeleteआभार आदरेया-
क्या बात, बहुत सुंदर
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