आज मैं अपनी हर बात पे अड़ूँगा,
महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा,
जमाने गुजारे हैं मैने बन्दगी में तेरी,
शान में तेरी न अब कशीदे पढ़ूँगा,
बेदाग समझता है तेरे हुस्न को जमाना,
दोष मेरे सारे अब तेरे सर ही मढ़ूँगा,
जमीं के सफर में ठोकर जो दी है तूने,
साथ मैं तेरे अब न चाँद पे चढ़ूँगा,
थी मेरी तक़दीर पे तेरी ही हुकूमत,
अब आज तेरी किस्मत मैं ही गढ़ूँगा
----- दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक'
http://yashoda4.blogspot.in/2012/02/blog-post_15.html
बहुत उम्दा गजल
ReplyDeletelatest post हमारे नेताजी
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़ियाँ गजल...
ReplyDelete:-)
बहुत खुबसूरत ..
ReplyDeleteसुन्दर रचना ।।
ReplyDeleteनये लेख : प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक : डॉ . सलीम अली
जन्म दिवस : मुकेश
वाह आपकी कविता पढ कर एक पुराना गीत याद आ गया ।
ReplyDeleteमेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे , मुझे गम देने वाले तू खुशी को तरसे ।