आज अचानक उनका आना रद्द हो गया
और हम निराश हो गए
जितने मंसूबे बनाए थे, दो हफ्तों में
सब धराशायी हो गए
दिमाग ने कुछ सकारात्मक सोचने को
प्रोत्साहित किया
और मन में कुछ उमंग का
प्रवाह हुआ
दिल उदास था
लेकिन दिमाग ने साथ दिया
मन के किसी कोने में
थोड़ा-सा आराम दिया
दिमाग ने कहा, अरे पागल मन
याद कर वह बीते दो हफ्ते
जो प्रिय के आने की खुशी में
बिता दिए खुशी-खुशी
कौन-सा पलड़ा ज्यादा भारी है
न आने का दुख किया।
या उनके आने की खुशी में
बिताए वो खुशगवार दो हफ्ते
मन को दिमाग की सोच पर
असीमित गर्व हुआ
और मन ने दिमाग को
किया.....
दिल से नमन।
- श्रीमती आशा मोर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (21-07-2013) को चन्द्रमा सा रूप मेरा : चर्चामंच - 1313 पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
wah ! sundar abhivyakti
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteलाजवाब !!
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