न सुनती है न कहना चाहती है
हवा इक़ राज़ रहना चाहती है
न जाने क्या समाई है कि अब की
नदी हर सम्त बहना चाहती है
सुलगती राह भी वहशत ने चुन ली
सफ़र भी पा बरहना चाहती है
तअल्लुक़ की अजब दीवानगी है
अब उस के दुख भी सहना चाहती है
उजाले की दुआओं की चमक भी
चराग़-ए शब में रहना चाहती है
भँवर में आँधियों में बादबाँ में
हवा मसरुफ़ रहना चाहती है
-मंजूर हाशमी
सौजन्यःअशोक खाचर
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteshyar vahi jo saf lafzon me apni bat khe or mere jaise aam aadmi ko smaj me aaye...hashmi sahab bhi aese hi shayr the jo urdu-farsi ke aalfaz jarurat ke waqt hi istmal karte the..
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति को कल रविवार, दिनांक 28/07/13 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर प्रसारित किया जाएगा ... साभार सूचनार्थ
ReplyDeleteबा-रफ्तारे-हाल कहे, परिंदों ने आसमानों के..,
ReplyDeleteहमने भी खोल दिए, बस्ते-बंद बादबानों के.....
Waah.... Behtreen Panktiyan
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