नए मौसम में सब बातें पुरानी भूल मत जाना
कई आँखों में जो उबला है पानी, भूल मत जाना
अदावत मरते दम तक है निभानी, भूल मत जाना
रिवायत है हमारी खानदानी, भूल मत जाना
चिता तो जल के कुछ ही देर में बुझ भी गयी लेकिन
किसी की मर गयी बेटी सयानी, भूल मत जाना
ये ज़ुल्मत और ये चीखें कभी बेशक़ न याद आयें
मगर इन मुन्सिफों की बेज़ुबानी भूल मत जाना
सियासी आँधियों के सामने जलते दिये लेकर
बहुत बेबस खड़ी थी नौजवानी, भूल मत जाना
तमाशा बन चुके जम्हूरियत के नूर की खातिर
जो हमने मुद्दतों तक खाक़ छानी, भूल मत जाना
रखेंगे याद हम तो हादसों को जीते जी अपने
कि रहबर तू भी अपनी बेईमानी भूल मत जाना
शुभकामनाओं सहित
सचिन अग्रवाल
कई आँखों में जो उबला है पानी, भूल मत जाना
अदावत मरते दम तक है निभानी, भूल मत जाना
रिवायत है हमारी खानदानी, भूल मत जाना
चिता तो जल के कुछ ही देर में बुझ भी गयी लेकिन
किसी की मर गयी बेटी सयानी, भूल मत जाना
ये ज़ुल्मत और ये चीखें कभी बेशक़ न याद आयें
मगर इन मुन्सिफों की बेज़ुबानी भूल मत जाना
सियासी आँधियों के सामने जलते दिये लेकर
बहुत बेबस खड़ी थी नौजवानी, भूल मत जाना
तमाशा बन चुके जम्हूरियत के नूर की खातिर
जो हमने मुद्दतों तक खाक़ छानी, भूल मत जाना
रखेंगे याद हम तो हादसों को जीते जी अपने
कि रहबर तू भी अपनी बेईमानी भूल मत जाना
शुभकामनाओं सहित
सचिन अग्रवाल
कुल करनी के कारनै, हंसा गया बिगोय ।
ReplyDeleteतब कुल का को लाजि है, चारि पाँव का होय ।।
----- ।। कबीर ।। -----
भावार्थ : -- कुल अर्थात खानदान की करनी के कारण हंस भी बिगड़ जाता है, अर्थात उत्तम जाति भी अनुत्तम हो जाती है । तब उस कुल का क्या मान -मर्यादा रही, जब वह और बिगड़ कर चार पाँव का जंतु हो गया ।।
कब का भूल गए
ReplyDeleteचौथे तक
बस चार दिन याद रहता है
नवीन अनुभूति के लिए सब तैयार हैं
हार्दिक शुभकामनायें .....
ReplyDeleteअदावत मरते दम तक है निभानी, भूल मत जाना
रिवायत है हमारी खानदानी, भूल मत जाना
हुस्न ए मतला , वाह बहुत सुंदर भाव पूर्ण गजल है, शुभकामनाये
यहाँ भी पधारे
गुरु को समर्पित
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html