चाँद-तारे निगल गया सूरज
आग ऐसी उगल गया सूरज
सर पे चड़ने का नतीजा देखा
किस तरह मुँह के बल गया सूरज
इसलिये मैं दिये जलाता हूँ
मेरे घर से निकल गया सूरज
शाम होते मुझे ये लगता है
आस्माँ से फिसल गया सूरज
उसको दिनभर नहीं मिला कुछ भी
अपने हाथों को मल गया सूरज
चाँद-तारों को रौशनी देकर
शाम चुपके से ढल गया सूरज
‘क़म्बरी’ ये बता नहीं पाया
जाने किस शै से जल गया सूरज
-अन्सार कम्बरा
बहुत खुबसूरत भावो की अभिवय्क्ति…।
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ReplyDeleteबेहतरीन रचना और सुंदर अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14 -07-2013) के चर्चा मंच -1306 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteवाह!!!बहुत खूब,सुंदर रचना ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी पहचान
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteअद्भुत भाव भरती कविता....
ReplyDeleteचाँद-तारों को रौशनी देकर
शाम चुपके से ढल गया सूरज
सुंदर भाव...
ReplyDeleteयही तोसंसार है...
nice presentation yashoda ji
ReplyDeletewahh bahut hi khubsurat avivyakti .. ekdam naye andaaz me .. badhayi :)
ReplyDelete‘क़म्बरी’ ये बता नहीं पाया
ReplyDeleteजाने किस शै से जल गया सूरज
क्या बात है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत खुबसूरत
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर
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