Wednesday, July 31, 2019

ग्लेशियर... पूजा प्रियम्वदा

एक डाह है रूह में 
जैसे तेरी उपेक्षा का 
जलता कोयला 
छू गया हो

जले हुए घाव सुना 
सालों तक उतारते हैं 
एक काले लम्हे की पपड़ी 
और निशान 
रह जाता है फिर भी

इस जिस्म के 
सुप्त ज्वालामुखी में 
मेरी रूह का ग्लेशियर 
पिघलने लगा है

बूंदों के वाष्प बनने से 
पहले न लौटो तो 
लावे के नमक में 
चख लेना मुझे !
-पूजा प्रियम्वदा


Tuesday, July 30, 2019

वृद्ध होती माँ......सुधा देवरानी

सलवटें चेहरे पे बढती ,मन मेरा सिकुड़ा रही है
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैं।

देर रातों जागकर जो घर-बार सब सँवारती थी,
*बीणा*आते जाग जाती , नींद को दुत्कारती थी ।
शिथिल तन बिसरा सा मन है,नींद उनको भा रही है,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैंं ।

हौसला रखकर जिन्होंने हर मुसीबत पार कर ली ,
अपने ही दम पर हमेशा, हम सब की नैया पार कर दी ।
अब तो छोटी मुश्किलों से वे बहुत घबरा रही हैं,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैं ।

सुनहरे भविष्य के सपने सदा हमको दिखाती ,
टूटे -रूठे, हारे जब हम, प्यार से उत्साह जगाती ।
अतीती यादों में खोकर,आज कुछ भरमा रही हैं ,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैंं !!

लेखिका परिचय -  सुधा देवरानी   

Monday, July 29, 2019

सावन ......देवेन्द्र पाण्डेय

भीड़ देख अझुरायल हउवा?
भाँग छान बहुरायल हउवा?

बुधिया जरल बीज से घायल
कइसे कही कि सावन आयल!

पुरूब नीला, पच्छुम पीयर
नीम अशोक पीपल भी पीयर

केहू ना जरको हरियायल
कइसे कही कि सावन आयल!

कउने डांड़े में बदरा-बदरी
खेलत हउवन पकरा-पकरी

धुपिया से अंखिया चुंधियायल
कइसे कही कि सावन आयल!

कत्तो बिजुरी नाहीं चमकल 
एक्को बुन्नी नाहीं बरसल

धरती धूप ताप धधायल
कइसे कही कि सावन आयल!

का भोले बाबा का कइला
बुन्नी के जटवा मा धइला?

खोला ! बरसे दा ! हहरायल
कइसे कही कि सावन आयल!
@देवेन्द्र पाण्डेय
मूल रचना

Sunday, July 28, 2019

रात का इंतज़ार कौन करे ....बशीर बद्र

कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता 
-बशीर बद्र

Saturday, July 27, 2019

तू बता दे कि फायदा क्या है ....डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी

2122 1212 22
पूछिये मत कि हादसा क्या है ।
पूछिये दिल कोई बचा क्या है।।

दरमियाँ इश्क़ मसअला क्या है।
तेरी उल्फ़त का फ़लसफ़ा क्या है ।।

सारी बस्ती तबाह है तुझसे ।
हुस्न तेरी बता रज़ा क्या है ।।

आसरा तोड़ शान से लेकिन ।
तू बता दे कि फायदा क्या है ।।

रिन्द के होश उड़ गए कैसे ।
रुख से चिलमन तेरा हटा क्या है ।।

बारहा पूछिये न दर्दो गम ।
हाले दिल आपसे छुपा क्या है ।।

फूँक कर छाछ पी रहा है वो ।
आदमी दूध का जला क्या है ।।

चाँद दिखता नहीं है कुछ दिन से ।
घर पे पहरा कोई लगा क्या है ।।

अश्क़ उतरे हैं तेरी आंखों में ।
ख़त में उसने तुझे लिखा क्या है ।।

-डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी 
मौलिक अप्रकाशित

Friday, July 26, 2019

आत्मविश्वास से कदम आगे बढ़ाओ ....निधि सक्सेना

सुनो लड़कियों
अपने पैरों का खास ख्याल रक्खो..
देखो एड़ियाँ कटी फटी न हों
नाखून ठीक आकार लिए हों
बढ़िया नेल पॉलिश लगी हो..
इसलिये भी कि इन्ही से दौड़ना है
अपने सपनो के पीछे
अपने अपनो के पीछे
और सबको पीछे कर के सबके आगे
तो इन्हें सर पर बैठा कर रखना होगा..

और इसलिए भी कि
व्यस्तता कितनी भी हो
गाहेबगाहे
अपने पैरों पर नज़र पड़ती ही रहती है..
अपने खूबसूरत पैर देख आत्मविश्वास 
का बढ़ जाना लाज़मी है..

चेहरा देखने तो आईना खोजना पड़ता है
या फिर किसी की आंखों में अपना अक्स देखो
मगर आजकल आंखे अंधी बहरी और गूंगी हो गई है
ईर्ष्यालु और फ़रेबी अलग
सो दूसरों की नज़रों पर क्यो निर्भर रहना
अपने खूबसूरत पावों को देख आत्ममुग्धता अनुभव करो
और 
आत्मविश्वास से कदम आगे बढ़ाओ..
-निधि सक्सेना

‘काँन्वेंट’ का अर्थ जानिए...

कान्वेंट शब्द पर गर्व न करें, सच समझे

 ‘काँन्वेंट’ सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि ये शब्द आखिर आया कहाँ से है, तो आइये प्रकाश डालते हैं।

ब्रिटेन में एक कानून था लिव इन रिलेशनशिप बिना किसी वैवाहिक संबंध के एक लड़का और एक लड़की का साथ में रहना। जब साथ में रहते थे तो शारीरिक संबंध भी बन जाते थे, तो इस प्रक्रिया के अनुसार संतान भी पैदा हो जाती थी तो उन संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया जाता था।
अब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाए तब वहाँ की सरकार ने काँन्वेंट खोले अर्थात जो बच्चे अनाथ होने के साथ-साथ नाजायज हैं उनके लिए काँन्वेंट बने।

उन अनाथ और नाजायज बच्चों को रिश्तों का एहसास कराने के लिए उन्होंने अनाथालयो में एक फादर एक मदर एक सिस्टर की नियुक्ति कर दी क्योंकि ना तो उन बच्चों का कोई जायज बाप है ना ही माँ है। तो काँन्वेन्ट बना नाजायज बच्चों के लिए जायज। इंग्लैंड में पहला काँन्वेंट स्कूल सन्  1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था जिसके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं और भारत में पहला काँन्वेंट स्कूल कलकत्ता में सन् 1842 में खोला गया था। परंतु तब हम गुलाम थे और आज तो लाखों की संख्या में काँन्वेंट स्कूल चल रहे हैं।
जब कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने की यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं।

मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है। उसमें वो लिखता है कि:............
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे। इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा।
इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” 

उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रुवाब पड़ेगा। अरे ! हम तो खुद में हीन हो गए हैं। जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा?

लोगों का तर्क है कि “अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है”। दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में ही बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है? शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईसा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईसा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी। समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी।

भारत देश में अब भारतीयों की मूर्खता देखिए जिनके जायज माँ बाप भाई बहन सब हैं, वो काँन्वेन्ट में जाते है तो क्या हुआ एक बाप घर पर है और दूसरा काँन्वेन्ट में जिसे फादर कहते हैं। आज जिसे देखो काँन्वेंट खोल रहा है जैसे बजरंग बली काँन्वेन्ट स्कूल, माँ भगवती काँन्वेन्ट स्कूल। अब इन मूर्खो को कौन समझाए कि भईया माँ भगवती या बजरंग बली का काँन्वेन्ट से क्या लेना देना?

दुर्भाग्य की बात यह है कि जिन चीजो का हमने त्याग किया अंग्रेजो ने वो सभी चीजो को पोषित और संचित किया। और हम सबने उनकी त्यागी हुई गुलाम सोच को आत्मसात कर गर्वित होने का दुस्साहस किया।


Thursday, July 25, 2019

सावन-भादों साठ ही दिन हैं....इब्ने इंशा

सावन-भादों साठ ही दिन हैं 
फिर वो रुत की बात कहाँ
अपने अश्क मुसलसल बरसें 
अपनी-सी बरसात कहाँ

चाँद ने क्या-क्या मंज़िल कर ली 
निकला, चमका, डूब गया
हम जो आँख झपक लें सो लें 
ऎ दिल हमको रात कहाँ

पीत का कारोबार बहुत है 
अब तो और भी फैल चला
और जो काम जहाँ को देखें, 
फुरसत दे हालात कहाँ

क़ैस का नाम सुना ही होगा 
हमसे भी मुलाक़ात करो
इश्क़ो-जुनूँ की मंज़िल मुश्किल 
सबकी ये औक़ात कहाँ
-इब्ने इंशा

Wednesday, July 24, 2019

रंगे चंट सियार राजनीति के...अलका गुप्ता

"तस्वीर क्या बोले " ग्रुप में दी गई तस्वीर पर 
चंद हाईकू पर मेरा प्रयास --
~~हाइकू~~

ऐश्वर्य भोगें !
खड्ग हस्त ले !
शीश मुकुट !

ले दर्प हार !
राज मद भोगते !
श्वेतधारी ये !

ह्रदय हीन !
चेहरे सपाट से !
भाव विहीन !

कठपुतले ये !
रंगे चंट सियार !
राजनीति के !
-अलका गुप्ता

Tuesday, July 23, 2019

उड़ेगी बिटिया.....विभा रानी श्रीवास्तव


नीतू भतीजी , डॉ. बिटिया महक , 
प्रीती दक्ष , स्वाति , मोनिका 
संग
बहुत सी बिटिया 
रब ने दिलाई
कोखजाई एक भी नहीं
ना इनमें से किसी से 
मेरा गर्भनाल रिश्ता है
लेकिन जो रिश्ता है
उसके लिए गर्भ का
होना न होना मायने नहीं रखता है
हम एक दूसरे के आंसू 
शायद ना पोछ पायें
लेकिन आंसू दिखलाने में
कमजोर महसूस नहीं करते हैं
खुशियाँ बांटने के लिए भी
बच्चों की तरह उछलते हैं .......

आप सोच रहे होंगे , आपको बता बोर क्यों कर रही हूँ ......

बेटिया वो ही नहीं होती , जिसे हम जन्म देते हैं ....
तब तो प्यारा तोता पिंजरा में हो गया
सिंधु कुँए में कैद हो गया
सोच का दायरा बढ़ना चाहिए

बेटा जोरू का गुलाम 
समझा नहीं जाना चाहिए
दमाद बेटी को खुश रखता है
आप खुश होती हैं न

 बेटा को ही प्यार करने से , यशोदा को नहीं जाना जाता !


Monday, July 22, 2019

कहाँ से आएगी माँ....यशोदा अग्रवाल


सोनोग्राफी क्लिनिक के अन्दर
एक महिला ने
थरथराते होठों से
एकान्त में..कहा
घर वाले मेरा ..
करवाना चाहते हैं
परीक्षण
जानना चाहते वे
लड़का है या फिर लड़की
अन्तरात्मा मेरी
धिक्कारती है मुझको
मैडम आप ही 
कोई दीजिए सुझाव
कह दीजिए आप
अगर 
आपने यह परीक्षण करवाया
तो प्रसव मैं नही करवा सकती..
हाँ,"मैडम ने कहा"
वैसे भी गलत भी 
हो जाते हैं कई टेस्ट 
सौ प्रतिशत 
कोई नहीं बता सकता
फिर मैडम ने कहा
क्यों नही चाहती आप??
क्या नहीं चाहिए बेटा??
लड़की तो हैं न एक फिर
ये खतरा क्यूँ...
वो महिला बोल पड़ी....
खतरा...
हाँ लड़की जन्मना 
खतरा ही तो है
पर,मैडम जी जब
एक माँ ऐसा सोचने लगे
तो फिर माँ कौन बनेगा
ये सृष्टि कैसे चलेगी???


Sunday, July 21, 2019

पहाड़ी (कुमाउँनी बोली) हाइकु..... कमला निखुर्पा


दैणा होया रे 
खोली का गणेशा हो 
सेवा करूंल ।
(1-अर्थ= दैणा होया= (कृपा करना),  
खोली =(मुख्य द्वार पर स्थापित)
2
दैणा होया रे
पंचनाम देवता
असीक दिया ।
( 2- असीक =आशीष)
3
मेरो पहाड़
हरयूँ  छ भरयूँ
आंख्यों मां  बस्युं ।
(3- अर्थ -हरयूँ  छ भरयूँ =हराभरा है)
4
बुरांशी फूली
डांडा कांठा सजी गे
के भल लागी ।
(4- बुरांश =एक पहाड़ी पुष्प, 
डांडा कांठा =पहाड़ का कोना कोना, 
भल =सुन्दर )
5
पाक्यो हिसालू
बेरू काफल पाक्यो
घुघूती बास्यो ।
 (5-हिसालू, बेरू ,काफल = पहाड़ी जंगली फल ,
घुघूती =पहाड़ी कबूतर,  बास्यो=गाता है  )

6
मुरूली बाजी
हुड़का ढमाढम
आयो बसंत ।
6- हुड़का = पहाड़ी वाद्ययंत्र 
(जो शिवजी के डमरू की तरह दिखता है)
7
गाओ झुमैलो
चाचरी की तान माँ
ताल मिलैलो ।
 (7-झुमैलो ,चाचरी =
पहाडी गीत जिसमें कदम से कदम मिलाकर 
समूह में नृत्य करते हैं।)
8
पीली आँङरी
घाघरी फूलों वाली
लागे आँचरी।
 ( 8- आँङरी = अँगिया(कुर्ती), 
आँचरी= परी  )
9
ओ री आँचरी
घर, खेत, जंगल
त्वीले सँवारी।
 (9- त्वीले = तुमने )
10-
मेरी बौराण
लोहा की मनख तू
हौंसिया पराण ।
(10- बौराण= बहुरिया(बहू), 
मनख =मनुष्य, 
हौंसिया पराण = जिंदादिल,हँसमुख)
11
छम छमकी
घुँघराली दाथुली
डाणा कांठा मां ।
[11- घुंघराली = घुंघरू लगे हुए , 
दाथुली= हँसिया(घास काटने का औजार)]
12
ओ री घसेरी
गाए तू जब न्योली
भीजी रे प्योंली ।
(12-घसेरी = घसियारिन,  
न्योली= विरहगीत/एक पक्षी,   
प्योंली=पीला पहाडी पुष्प )
13
पीठ पे बोझ
आँखें हेरे हैं बाट 
सिपाही स्वामी ।
14
धन्य हो तुम
धन्य हिम्मत तेरी
प्यारी घुघूती ।

15
तू शक्तिरूपा
इजा, बेटी, ब्वारी तू
तू वसुंधरा ।
(15 इजा=माँ , ब्वारी=बहू )

16
ऊँचा हिमाल
ऊँचो सुपन्यू तेरो
पूर्ण ह्वे जाल ।
( 16- सुपन्यू =सपना )
-कमला निखुर्पा

Saturday, July 20, 2019

ज़िंदगी की किताब.....अनीता सैनी


क़्त  ने   लिखे  अल्फ़ाज़,
ज़िंदगी  की नज़्म  बन  गयी, 
सीने में दबा, साँसों ने लिया संभाल, 
अनुभवों  की  किताब  बन गयी  |

होठों की मुस्कान, 
न भीगे  नम आँखों से,ख़ुशी का आवरण गढ़ गयी,
शब्दों को सींचा स्नेह से,
दर्द में डूबी मोहब्बत,अल्फ़ाज़ में सिमट गयी |

गुज़रे   वक़्त   को, 
आँखों  में किया बंद, लफ़्ज़ ज़िंदगी पढ़ती गयी , 
मिली  मंज़िल  मनचाही, 
हिम्मत  साँसों  में  ढलती गयी  |

 संघर्ष  के  पन्नों  पर, 
अमिट उम्मीद की मसी  फैल  गयी , 
सुख  खिला  संतोष  में,
इंसानियत  की  नींव  रखती   गयी  |

न हृदय को पड़ी,  मैं की  मार, 
न अंहकार से  हुई  तक़रार,
मिली चंद साँसें  उसी  को  जीवन वार,
ज़िंदगी अल्फ़ाज़  में  सिमटी  किताब  बन  गयी |
                

            लेखक परिचय - अनीता सैनी 

Friday, July 19, 2019

आँखों की अनदेखी लिपियाँ..रश्मि शर्मा


कही तुमने 
बार-बार वो बातें
जिनका मेरे लिए
न कोई अर्थ है
ना ही अस्तित्व

जो मैं पढ़ना चाहूँ
तुम्हारी आँखों की 
अनदेखी लिपियाँ
कहो, कौन सी कूट का
इस्‍तेमाल करूं !

ढूंढ रही हूँ 
कोई ऐसा स्रोत
ऐसी किताब
जो नयनों की भाषा को
शब्‍दों में बदलती हो

है ये ईसा पूर्व की, या
सोलहवीं सदी 
की सी बात
कि हमारे बीच से
शब्‍द अदृश्‍य ही रहे हैं

अब तुम पढ़ना
मेरा मौन, देखना 
मेरी अनवरत प्रतीक्षा
अब मैं कूट-लिपिक बन
पढूंगी बस
आँखों की अनदेखी लिपियाँ...। 

-रश्‍मि शर्मा
मूल रचना

Thursday, July 18, 2019

कुछ यूँ लगा जैसे....मीना शर्मा

छूकर मेरी पलकें मेरा सपना चला गया
कुछ यूँ लगा जैसे कोई अपना चला गया !

खाली पड़ा हुआ था, जो मुद्दत से बंद था
रहकर उसी मकान में मेहमां चला गया !

ले गया कोई हमें, हमसे ही लूटकर
इक अजनबी के संग दिल-ए-नादां चला गया !

आँखें तो कह रही थीं, रोक लो अगर चाहो
जाने के बाद फिर ये ना कहना - चला गया !

मंज़िल को ढ़ूँढ़ती रहीं कुछ गुमशुदा राहें
ना जाने कब, यहाँ से कारवां चला गया !

वो शौक, वो फ़ितूर, वो दीवानगी कहाँ ?
बारिश में भीगने का जमाना चला गया !

अब घोंसलों को तोड़कर बनते हैं घरौंदे
चिड़िया का इस शहर से आशियां चला गया !!!


लेखक परिचय -  मीना शर्मा 

Wednesday, July 17, 2019

यूँ तो हर मंदिर में बस पत्थर मिलेगा ..दिगंबर नासवा

खेत, पीपल, घर, कुआँ, पोखर मिलेगा
क्यों है ये उम्मीद वो मंज़र मिलेगा

तुम गले लगना तो बख्तर-बंद पहने
दोस्तों के पास भी खंज़र मिलेंगा

कूदना तैयार हो जो सौ प्रतीशत
भूल जाना की नया अवसर मिलेगा

इस शहर में ढूंढना मुमकिन नहीं है
चैन से सोने को इक बिस्तर मिलेगा

देर तक चाहे शिखर के बीच रह लो
चैन धरती पर तुम्हे आकर मिलेगा

बैठ कर देखो बुजुर्गों के सिरहाने
उम्र का अनुभव वहीं अकसर मिलेगा

मन से मानोगे तो खुद झुक जाएगा सर 
यूँ तो हर मंदिर में बस पत्थर मिलेगा !!


लेखक परिचय -  दिगंबर नासवा

Tuesday, July 16, 2019

मरने के इन्तजार में एक दिन...अरुण चन्द्र रॉय

जिस दिन
मैं मर जाऊंगा
घर के सामने वाला पेड़
कट  जाएगा
उजड़ जाएंगे
कई जोड़े घोसले
उनपर नहीं चहचहाएंगी
गौरैया मैना
गिलहरियां भी
सुबह से शाम तक
अटखेलियां नहीं करेंगी
कोई नहीं रखेगा इन चिड़ियों के दाना और पानी
अपनी व्यस्तता से निकाल कर दो पल





पहली मंजिल की बैठकखाने की खिड़कियाँ

जहाँ अभी पहुँचती है पेड़ की शाखा
वहां सुबह से शाम तक रहा करेगा
उज्जड रौशनी
ऐसा कहते हैं घरवाले
मेरी पीठ के पीछे
इसी शाखा की वजह से
बैठकखाने में नहीं लग पा रहा है
वातानुकूलन यन्त्र
मेरी गोद  में उछल कर कहता है
मेरी सबसे छोटी पोती।





जैसे मेरे मरने के बाद नीचे नहीं आया करेगा

पीला कुत्ता
जिसे मैंने चुपके से गिरा दिया करता हूँ
अपने हिस्से की रोटी से एक कौर
मर जाएगा मेरे और कुत्ते के बीच एक अनाम सम्बन्ध
झूठ कहते हैं कि  कोई मरता है अकेला
जबकि जब भी कोई मरता है
उसके साथ मरती हैं  कई और छोटी छोटी चीज़ें



मरने का इन्तजार

पूरे जीवन के वर्षों से कहीं अधिक दीर्घ होता है !



Monday, July 15, 2019

तपती दुपहरी......शुभा मेहता

जेठ की इस 
तपती दुपहरी में
हाल -बेहाल
पसीने से लथपथ 
जब काम खत्म कर 
वो निकली बाहर 
घर जाने को 
बडी़ गरमी थी 
प्यास से गला 
सूखा.......
घर पहुँचने की जल्दी थी 
वहाँ बच्चे कर रहे थे 
इंतजार उसका 
सोचा ,चलो रिक्षा कर लूँ
फिर अचानक बच्चों की 
आवाज कान में गूँजी..
"माँ ,आज लौटते में 
तरबूज ले आना 
गरमी बहुत है 
मजे से खाएंगे"
और उसके कदम 
बढ़ उठे उधर 
जहाँ बैठे थे 
तरबूज वाले
सोचा ,बच्चे कितने खुश होगें 
मैं तो पैदल ही 
पहुंच जाऊँगी ...
पसीना पोंछ 
मुस्कुराई ...
तरबूज ले 
चल दी घर की ओर ......माँँ जो थी

लेखक परिचय - शुभा मेहता