Tuesday, July 9, 2013

मैं उसको पढ़ रहा हूँ सादगी से............सचिन अग्रवाल



यही एक इल्तिजा है ज़िन्दगी से
हमें मरने न देना खुदखुशी से

वफ़ा, चाहत, मुहब्बत, दोस्ती से
मैं आजिज़ आ गया हूँ आजिज़ी से

मैं तेरे फैसले का मुन्तजिर हूँ
बहुत उकता गया हूँ बेबसी से

वो जिससे कुछ भी अब तक कह न पाए
हमें कहना भी सब कुछ है उसी से

सवाल अब भी मेरा तुमसे वही है
मुहब्बत मुझसे है या बांसुरी से ?

तुम्हारे बारे में कुछ लिख रहा हूँ
महक सी आ रही है डायरी से

मुनासिब है ग़ज़ल हो जाए वो भी
मैं उसको पढ़ रहा हूँ सादगी से

-सचिन अग्रवाल
sachin.agrawal.330@facebook.com
 

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (09-07-2013) को मंगलवारीय चर्चा--1301--आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी कंचे गीत.में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

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  3. वाह .. एक एक शेर उम्दा है जी

    पधारिये और बताईये  निशब्द

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  5. बहुत सुंदर, आभार
















    यहाँ भी पधारे ,
    रिश्तों का खोखलापन
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html

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  6. सुन्दर प्रस्तुति है
    आभार आपका -

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  7. बेहद सुन्दन प्रस्तुति.....

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  8. खूबशूरत अहसाह ,बेहतरीन प्रस्तुति

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  9. मुनासिब है ग़ज़ल हो जाए वो भी
    मैं उसको पढ़ रहा हूँ सादगी से.... खुबसूरत अभिवयक्ति....

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