यही एक इल्तिजा है ज़िन्दगी से
हमें मरने न देना खुदखुशी से
वफ़ा, चाहत, मुहब्बत, दोस्ती से
मैं आजिज़ आ गया हूँ आजिज़ी से
मैं तेरे फैसले का मुन्तजिर हूँ
बहुत उकता गया हूँ बेबसी से
वो जिससे कुछ भी अब तक कह न पाए
हमें कहना भी सब कुछ है उसी से
सवाल अब भी मेरा तुमसे वही है
मुहब्बत मुझसे है या बांसुरी से ?
तुम्हारे बारे में कुछ लिख रहा हूँ
महक सी आ रही है डायरी से
मुनासिब है ग़ज़ल हो जाए वो भी
मैं उसको पढ़ रहा हूँ सादगी से
-सचिन अग्रवाल
sachin.agrawal.330@facebook.com
यही एक इल्तिजा है ज़िन्दगी से
हमें मरने न देना खुदखुशी से
हमें मरने न देना खुदखुशी से
वफ़ा, चाहत, मुहब्बत, दोस्ती से
मैं आजिज़ आ गया हूँ आजिज़ी से
मैं तेरे फैसले का मुन्तजिर हूँ
बहुत उकता गया हूँ बेबसी से
वो जिससे कुछ भी अब तक कह न पाए
हमें कहना भी सब कुछ है उसी से
सवाल अब भी मेरा तुमसे वही है
मुहब्बत मुझसे है या बांसुरी से ?
तुम्हारे बारे में कुछ लिख रहा हूँ
महक सी आ रही है डायरी से
मुनासिब है ग़ज़ल हो जाए वो भी
मैं उसको पढ़ रहा हूँ सादगी से
-सचिन अग्रवाल
sachin.agrawal.330@facebook.com
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (09-07-2013) को मंगलवारीय चर्चा--1301--आँगन में बिखरे रहे, चूड़ी कंचे गीत.में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
ReplyDeleteवाह .. एक एक शेर उम्दा है जी
ReplyDeleteपधारिये और बताईये निशब्द
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteबहुत सुंदर, आभार
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे ,
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
सुन्दर प्रस्तुति है
ReplyDeleteआभार आपका -
बेहद सुन्दन प्रस्तुति.....
ReplyDeleteखूबशूरत अहसाह ,बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteमुनासिब है ग़ज़ल हो जाए वो भी
ReplyDeleteमैं उसको पढ़ रहा हूँ सादगी से.... खुबसूरत अभिवयक्ति....