Sunday, February 15, 2015

यूँ ही बेसबब न फिरा करो..................पद्मश्री डॉ.बशीर बद्र





पद्मश्री डॉ.बशीर बद्र 
आज पद्मश्री डॉ.बशीर बद्र जी का जन्मदिन है
मैं असीम शुभकामनाएं प्रेषित करती हूँ
 
यूँ ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो

अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो

मुझे इश्तहार सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो

कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन-सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो

ये ख़िज़ा की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो

नहीं बेहिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो


पद्मश्री डॉ.बशीर बद्र,
ख़िज़ाः पतझड़  ज़र्द-सीः पीला सा
सैयद मोहम्मद बशीर
जन्मः 15 फरवरी 1936, कानपुर , उत्तर प्रदेश

Friday, February 13, 2015

लफ्ज़ों का बयां...श़ायरों की ज़ुबां



आशिकी से मिलेगा ए ज़ाहिद
बन्दगी से ख़ुदा भी नहीं मिलता
-दाग

दुनिया के सितम याद न अपनी वफा याद
अब मुझको नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद
-जिगर मुरादाबादी


एक मुद्दत से तेरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
-फ़िराक


इश्क से तबियत ने जिस्त का मजा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया
-गालिब


मुहब्बत में नहीं फर्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
-गालिब

मालूम है कि प्यार खुला आसमान है
छूटते नहीं ये दर-ओ-दीवार क्या करूँ
अनवर शऊर


मोहब्बत उसे भी बहुत है मुझसे
जिन्दगी सारी इस वहम ने ले ली
-मजाज लखनवी


वो मेरा है तो कोई और उसे क्यों देखे
जाने क्यों मुहब्बत में, बच्चा-सा हो गया हूँ मैं
-मजाज लखनवी


ये मुहब्बत भी है क्या रोग फराज़
जिसे भूले वो सदा याद आया
-अहमद फराज़

इन को नासिर न कभी आंख से गिरने देना
उनको लगता है मेरी आंख में प्यारे आंसू
-नासिर काजमी

प्यारा सा संकलन
नायिका से


Thursday, February 12, 2015

उस दिन तय होगा ....................मोतीलाल













 
उस दिन तय होगा समय
जब पछाड़ खाता समुद्र
एक दिन ठिठककर
स्वाभिमान के नाम पर
बाहर और भीतर के ऊहापोह में
चुपके से भाप बन उड़ जाएगा।


उस दिन तय होगा समय
जब इठलाता बहकता बसंत
एक दिन ठिठककर
अस्मिता के नाम पर
वन और नगर के ऊहापोह में
चुपके से बिना संवरे सो जाएगा। 


उस दिन तय होगा समय
जब शांत शीतल नदी
एक दिन ठिठककर
अनुभूति के नाम पर
गांव और पहाड़ के ऊहापोह में
चुपके से बहने की जिद छोड़ चुकेगी।


उस दिन तय होगा समय
जब सभी मूल्यों का आटा
एक दिन ठिठककर
भूख के नाम पर
पेट और आत्मा के ऊहापोह में
चुपके से गीला कर दिया जाएगा। 


उस दिन तय होगा समय
जब सभी मूल्यांकन
एक दिन ठिठककर
संभ्रांत बनने के नाम पर
अभी और तभी के कील में
चुपके से जोड़ दिया जाएगा।  


हां, उस दिन तय होगा
हमारा समय।


- मोतीलाल
बिजली लोको शेड, बंडामुंडा
राउरकेला : 770 032



Thursday, February 5, 2015

जीने की तमन्ना में ही मर जाते हैं लोग...........नफ़स अम्बालवी



यूँ तो खुद अपने ही साये से भी डर जाते हैं लोग
हादसे कैसे भी हों लेकिन गुज़र जाते हैं लोग

जब मुझे दुश्वारियों से रूबरू होना पड़ा
तब मैं समझा रेज़ा रेज़ा क्यों बिखर जाते हैं लोग

सिर्फ ग़ाज़ा ही नहीं चेहरों की रानाई का राज़
शिद्दते-ग़म की तपिश से भी निखर जाते हैं लोग

हर 'नफ़स' मर मर के जीते हैं तुझे ऐ ज़िन्दगी
और जीने की तमन्ना में ही मर जाते हैं लोग !!

-नफ़स अम्बालवी

ग़ाज़ा : मुँह पर लगाने का पाउडर;
नफ़स : साँस

 

Wednesday, February 4, 2015

वसंत ऋतु अति मन भावन............गोविन्द भारद्वाज


 कुछ वासंती हाईकू


कोयल कूके
वन-उपवन में
मन के बीच

धरा ने ओढ़ी
वसंती चुनरिया
फूलों से जड़ी

वसंत ऋतु
अति मन भावन
घर-आंगन


नए कोंपल
पुरानी डालपर
नए कपड़े

प्रेम की पाती
लगती वसंत में
जीवन धरा

धरती झूमें
पहन पीली साड़ी
जैसे दुल्हन

मन-आंगन
खिल गई कलियां
भंवरे डोले

तितली रानी
आई है वसंत में
फूल खिलाने

जड़ बंजर
सबकी गोद भरी
इस ऋतु में

मीठी ठण्ड में
आई ओढ़ रजाई
बसंती हवा

महक उठा
सांसों का उपवन
छूकर उसे

नाचे मयूरा
मन उपवन में
पंख पसार


-गोविन्द भारद्वाज


..............पत्रिका से