Sunday, March 31, 2019

बेटी हमेशा दिल में मौजूद रहती है...!!

एक पिता ने अपनी बेटी की अच्छे परिवार में सगाई करवाई, लड़का बड़े अच्छे घर से था सुशील था तो पिता बहुत खुश हुए..
लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव बड़ा अच्छा था तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया.....

एक दिन शादी से पहले लड़के वालों ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया
पिता की तबीयत ठीक न थी फिर भी वो ना न कह सके.
लड़के वालो ने बड़े आदर सत्कार से उनका हार्दिक स्वागत किया....
फ़िर लड़की के पिता के लिए चाय आई.......डायबीटिज कि वजह से लड़की के पिता को चीनी वाली चाय से दूर रहने को कहा गया था....लेकिन लड़की के होने वाले ससुराल में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली...
चाय कि पहली चुस्की लेते ही चौंक गये..... चीनी बिल्कुल भी नहीं थी और ईलायची भी डाली हुई थी

सोच में पड़ गये हमारी जैसी चाय पी ते हैं ये लोग भी.. दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा,
दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चद्दर उठते ही सौंफ का पानी पीने को दिया गया...
वहाँ से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पूछ बैठे....

मुझे क्या खाना है,
क्या पीना है,
मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है ??
ये  आपको कैसे पता है ??
तो बेटी कि सास ने कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फोन आ गया था ओर कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं,बोलेंगे कुछ नहीं कृपया आप उनका ध्यान रखियेगा.....पिता की आंखों मे वहीं पानी आ गया था
लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचे

तो घर के हाल में लगी आपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया
तो पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो
तो लड़की का पिता बोला मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से गयी नहीं मेरी बेटी के रुप में इस घर में ही रहती है और फिर पिता की आंखों से आँसू छलक गये......सब कहते हैं कि बेटी है एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी....बेटी कभी भी अपने माँ बाप के घर से नहीं जाती
वो हमेशा उनके दिल में मौजूद रहती है...!!
-संकलित

Saturday, March 30, 2019

‘एक नया अनुभव’...हरिवंश राय बच्चन



मैंने चिड़िया से कहा, 'मैं तुम पर एक 
कविता लिखना चाहता हूँ ।'
चिड़िया ने मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में 
मेरे परों की रंगीनी है ?'
मैंने कहा, 'नहीं ।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है ?'
'नहीं ।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैनों की उड़ान है ?'
'नहीं ।'
'जान है ?'
'नहीं ।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे ?'
मैंने कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है ।'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है ?'
एक अनुभव हुआ नया ।
मैं मौन हो गया !
-हरिवंशराय बच्चन

Friday, March 29, 2019

धुँध की चादर जो आँख़ों में पड़ी...श्वेता सिन्हा

तन्हाइयों में गुम ख़ामोशियों की
बन के आवाज़ गुनगुनाऊँ 
ज़िंदगी की थाप पर नाचती साँसें
लय टूटने से पहले जी जाऊँ 

दरबार में ठुमरियाँ हैं सर झुकाये
सहमी-सी हवायें शायरी कैसे सुनायें
बेहिस क़लम में भरुँ स्याही बेखौफ़ 
तोड़कर बंदिश लबों की, गीत गाऊँ

गुम फ़िजायें गूँजती बारुदी पायल
गुल खिले चुपचाप बुलबुल हैं घायल
मंदिर,मस्जिद की हद से निकलकर
छिड़क इत्र सौहार्द के,नग्में सुनाऊँ

हादसों के सदमे से सहमा शहर
बेआवाज़ चल रही हैं ज़िंदगानी
धुँध की चादर जो आँख़ों में पड़ी
खींच दूँ नयी एक सुबह जगाऊँ

बंद दरवाज़े,सोये हुये हैंं लोग बहरे
आम क़त्लेआम, हँसी पर हज़ार पहरे
चीर सन्नाटों को, रचा बाज़ीगरी कोई
खुलवा खिडकियाँ आईना दिखाऊँ

काश! आदमियत ही जात हो जाये
दिलों से मानवता की बात हो जाये
कूची कोई जादू भरी मुझको मिले
स्वप्न सत्य करे,ऐसी तस्वीर बनाऊँ


Thursday, March 28, 2019

कोई गीत गाए तो कैसे ?....डॉ. अनिल चड्डा

अधरों पर
तुम्हारे प्यार के कुहासे छाए हैं
कोई मुस्कराए तो कैसे ?

जीवन का हर क्षण
तुम्हारा नाम गुनगुनाए है
कोई मर जाए तो कैसे ?

कलियों औ' भौरों की
गुपचुप से मन शर्माए है
कोई कुछ बतलाए तो कैसे ?

उनके कदमों की आहट पर
हमने कान लगाए हैं
कोई छिप जाए तो कैसे ?

रीता मन
हरदम उन्हें अपने पास बुलाए है
कोई गीत गाए तो कैसे ?
- डॉ. अनिल चड्डा

Wednesday, March 27, 2019

अश्रु और मैं.....सपना पारीक 'स्वप्न'

मैं और अश्रु
इसके अलावा
ना था कोई और
हम दोनों थे
एकांत था
बहुत खुश थे
स्पर्श का अहसास था
गुफ्तगू की हमने
कहा हमने उनसे
क्यों चले आते हो हरदम
क्या करूं ?
तुम्हें महसूस करते हैं
लगता है जब तुम अकेले हो
हम दौड़े चले आते हैं
हमें तुम्हारी आदत-सी हो गई
हमारे आने के बाद
हल्केपन का अहसास होता है
दिल का भार अश्रु संग बहाते हैं
इसलिए हम चले आते हैं।
अश्रुओं की व्यथा...
है ना स्वप्न...!
- सपना पारीक 'स्वप्न'

Tuesday, March 26, 2019

खूबसूरत घुंध..... आकांक्षा सक्सेना

मेरी अखियों में वो ख्वाब सुनहरा था
मेरे ख्वाब को कोमल पंखुड़ियों ने घेरा था
वदन को उसका आज इंतजार गहरा था
खिंचने लगी बिन डोर उसकी श्वांसों की ओर
मेरी श्वासों ने चुना वो शख्स हीरा था


आज की शाम बेहद नशीली थी
उसकी आहटों की सुंगध सी फैली थी
क्या पता था आज क्या मिलने वाला था
दीदार उसका किसको होने वाला था 
उसकी परछाईं मेरी परछाईं से टकरा गयी 


मेरी हर श्वांस उसकी श्वांस में समा गयी
बाद में वो परछाईं पानी में टकराने लगी
नियत उसकी दिले आईने में नजर आने लगी
उसकी नजरें हृदय के पार न जा सकीं
उसकी सारी बातें हारे दिल से हार गयीं


जाग उठी बेगैरत ख्वाब  से जल्दी
हँस पड़ी हँसते दर्द से आँखें अपनी
चमक में हीरा पर श्वाद जहरीला था
छै घंटे की नींद को एक ख्वाब ने घेरा था
मुझे तो हुआ मात्र एक भ्रम था
वो तो सिर्फ़ एक खूबसूरत धुंध था। 

Monday, March 25, 2019

हरसिंगार की लालिमा ....श्वेता सिन्हा

उँघती भोर में
चिड़ियों के कलरव के साथ
आँखें मिचमिचाती ,अलसाती
चाय की महक में घुली
किरणों की सोंधी छुअन
पत्तों ,फूलों,दूबों पर पसरे
पनीले इंद्रधनुष,
सुबह की ताज़गी के
सारे रंग समेटकर
हल्दी,नमक,तेल,छौंक,बघार,
में डालकर
अक़्सर नज़र अंदाज़
कर देती है
बहार का रंग,
दौड़ती-भागती,
पिटारों से निकालकर
अलगनी पर डालती
कुछ गीली,सूखी यादों को,
 श्वेत-श्याम रंग की सीली खुशबू
को नथुनों में भरकर
 कतरती,गूँथती,पीसती,
अपने स्वप्नों के सुनहरे रंग,
पतझड़ को बुहारकर
देहरी के बाहर रख देती
हवाओं की सरसराहट
मेघों की आवारगी,
खगों,तितलियों,
भँवरों का गीत
टेसु के फूल,
हरसिंगार की लालिमा,
केसरिया गेंदा,सुर्ख़ गुलाब
महकती जूही
चाँदनी की स्निग्धता,
गुनगुनी धूप की मदमाहट,
बसंत की सुगबुगाहट,
रिमझिम बूँदों सी बरसती
रंगों को मिलाकर
एक चुटकी सिंदूर के रंग में
 सजाती है
अपने माथे पर,
अपने तन-मन पर
 खिले सारे रंगों को निचोड़कर
 समर्पण की तुलिका को
 डुबो-डुबोकर भाव भरे पलों में
 पुरुष की कामनाओं के कैनवास पर
 उकेरती है अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति
हल्के रंगों से रंगकर
अपने व्यक्तित्व
 उभारकर चटख रंगों को
 रचती है
 पुरुषत्व का गहरा रंग।

 -श्वेता सिन्हा

Sunday, March 24, 2019

ख़ामोश फिर भी बहेंगे..... महेशचन्द्र गुप्त 'ख़लिश'

नहीं ज़िक्र तेरा किसीसे करेंगे
मगर अश्क ख़ामोश फिर भी बहेंगे

मुहब्बत तेरी फ़क्त थी इक दिखावा
बहुत पाक थी तू, सभीसे कहेंगे

नहीं आह लब से उठेगी कभी भी 
सितम वास्ते हम तेरे सब सहेंगे

मिला आज अंजाम उल्फ़त का ऐसा
मुहब्बत कभी फिर नहीं कर सकेंगे

रहे तू सलामत नई जिंदगी में
ख़ुदारा ख़लिश अब नहीं हम मिलेंगे.
-महेशचन्द्र गुप्त 'ख़लिश'

Saturday, March 23, 2019

जब से आयी है मेरे घर नन्ही-सी परी एक....गुरदीप सिंह

श्यामल घटा से थे कभी केसुये जो मेरे !
चाँदी-सी कुछ-कुछ इनमे चमकने सी लगी है !!

गुमान तो मुझे जो जवानी पर मेरी !
धीरे-धीरे उमर अब ढलने सी लगी है ! !

हर रूपसी में नज़र आती थी मासूका !
बहन-बेटी अब दिखने सी लगी है ! !

जब से आयी है मेरे घर नन्ही-सी परी एक !
मेरी तो दुनिया ही मानो बदलने सी लगी है ! !
-गुरदीप सिंह

Friday, March 22, 2019

मुझे पुकार लो...हरिवंशराय बच्चन

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

तिमिर-समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी,
विनष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी विरह-घिरी विभावरी,
कहाँ मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की,

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे दुलार लो!

उजाड़ से लगा चुका उमीद मैं बहार की,
निदाघ से उमीद की बसंत के बयार की,
मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी,
अंंगार से लगा चुका उमीद मै तुषार की,
कहाँ मनुष्य है जिसे न भूल शूल-सी गड़ी
इसीलिए खड़ा रहा कि भूल तुम सुधार लो!

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!
- हरिवंशराय बच्चन


Thursday, March 21, 2019

अबकी बार होली में - आचार्य संजीव सलिल

करो आतंकियों पर वार अबकी बार होली में.
न उनको मिल सके घर-द्वार अबकी बार होली में.

बना तोपोंकी पिचकारी चलाओ यार अब जी भर.
निशाना चूक न पाए, रहो गुलज़ार होली में.

बहुत की शांति की बातें, लगाओ अब उन्हें लातें.
न कर पायें घातें कोई अबकी बार होली में.

पिलाओ भांग उनको फिर नचाओ भांगडा जी भर.
कहो बम चला कर बम, दोस्त अबकी बार होली में.

छिपे जो पाक में नापाक हरकत कर रहे जी भर.
करो बस सूपड़ा ही साफ़ अब की बार होली में.

न मानें देव लातों के कभी बातों से सच मानो.
चलो नहले पे दहला यार अबकी बार होली में.

जहाँ भी छिपे हैं वे, जा वहीं पर खून की होली.
चलो खेलें 'सलिल' मिल साथ अबकी बार होली में.
-आचार्य संजीव सलिल

Wednesday, March 20, 2019

सात सालों के बाद इस शुभ संयोग में मनेगी होली, होलिका दहन का यह है शुभ समय

रंगों का त्योहार होली इस बार चैत कृष्ण प्रतिपदा गुरुवार 21 मार्च को मनेगी। इससे एक दिन पूर्व 20 मार्च को होलिका दहन होगा। होलिका दहन पर इस बार दुर्लभ संयोग बन रहे हैं। इन संयोगों के बनने से कई अनिष्ट दूर होंगे। दूसरी ओर फाल्गुन कृष्ण अष्टमी14 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत हो गयी है। होलाष्टक आठ दिनों को होता है। ज्योतिषाचार्य प्रियेंदू प्रियदर्शी ने धर्मशास्त्रों के हवाले से बताया कि लगभग सात वर्षों के बाद देवगुरु बृहस्पति के उच्च प्रभाव में गुरुवार को होली मनेगी। इससे मान-सम्मान व पारिवारिक शुभ की प्राप्ति होगी। राजनीति की वर्ष कुंडली के अनुसार नए वर्ष में नए नेताओं को लाभ मिलेगा। 

हिन्दू नववर्ष के पहले दिन मनेगी होली 

ज्योतिषाचार्य पीके युग के अनुसार हिन्दू नव वर्ष के पहले दिन होली मनायी जाएगी। उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में होली मनेगी। यह नक्षत्र सूर्य का है। सूर्य आत्मासम्मान, उन्नति, प्रकाश आदि का कारक है। इससे वर्षभर सूर्य की कृपा मिलेगी। आचार्य के मुताबिक जब सभी ग्रह सात स्थानों पर होते हैं वीणा योग का संयोग बनता है। होली पर ऐसी स्थिति से गायन-वादन व नृत्य में निपुणता आती है।

सौभाग्य देनेवाली है होलिकाभस्म

ज्योतिषाचार्य युग ने बताया कि होलिका दहन इस बार पूर्वा फाल्गुन नक्षत्र में है। यह शुक्र का नक्षत्र है जो जीवन में उत्सव, हर्ष,आमोद-प्रमोद, ऐश्वर्य का प्रतीक है। भस्म सौभाग्य व ऐश्वर्य देने वाला होता है। होलिका दहन में जौ व गेहूं के पौधे डालते हैं। फिर शरीर में ऊबटन लगाकर उसके अंश भी डालते हैं। ऐसा करने से जीवन में आरोग्यता और सुख समृद्धि आती है।

होलिका दहन का यह है शुभ समय 

20 मार्चकी रात्रि 8.58 से रात 12.05 बजे। भद्रा का समय, भद्रा पुंछ : शाम 5.24 से शाम 6.25 बजे तक। भद्रा मुख : शाम 6.25 से रात 8.07 बजे तक। 

अगजा धूल से शुरू होती है होली 

ज्योतिषी इंजीनियर प्रशांत कुमार के अनुसार अगजा की धूल से होली की शुरुआत होती है। होलिका दहन की पूजा और रक्षो रक्षोघ्न सूक्त का पाठ होता है। अगजा की तीन बार परिक्रमा की जाती है। अगजा में लोग गेहूं,चना व पुआ-पकवान अर्पित करते हैं। अगजा के बाद सुबह में उसमें आलू, हरा चना पकाते और ओरहा खाते हैं। नहा धोकर शाम में मंदिर के पास जुटते हैं। नए कपड़े पहनकर भगवान को रंग-अबीर चढ़ाते हैं। 


Tuesday, March 19, 2019

अभी भुला क्यूँ नही देते....प्रीती श्रीवास्तव


वफा के बदले वफा क्यूँ नही देते।
जख्म दिया है दवा क्यूँ नही देते।।

आंख है नम जो तुम्हारे साथ से।
तुम उसे अभी भुला क्यूँ नही देते।।

मुहब्बत नही जब तुम्हारी रूह से।
गुनाह की उसे सजा क्यूँ नही देते।।

दिल है तुम्हारा नाजुक आइने सा।
दीदार उसे भी करा क्यूँ नही देते।।
देवता है जो वो पत्थर का साहिब।
बीच चौराहे उसे दफना क्यूँ नही देते।।

जिओगे कब तक उसका नाम लेकर।
लिखकर खत जला क्यूँ नही देते।।

फायदा क्या तुम्हारे ऐसे जीने से।
उसको भी तुम रूला क्यूँ नही देते।।
-प्रीती श्रीवास्तव

Monday, March 18, 2019

अभी न होगा मेरा अन्त....पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

अभी न होगा मेरा अन्त 

अभी-अभी ही तो आया है 
मेरे वन में मृदुल वसन्त- 
अभी न होगा मेरा अन्त 

हरे-हरे ये पात, 
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! 

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर 
फेरूँगा निद्रित कलियों पर 
जगा एक प्रत्यूष मनोहर 

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, 
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, 

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको 
है मेरे वे जहाँ अनन्त- 
अभी न होगा मेरा अन्त। 

मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण, 
इसमें कहाँ मृत्यु? 
है जीवन ही जीवन 
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन 
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन, 

मेरे ही अविकसित राग से 
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त; 
अभी न होगा मेरा अन्त।

- पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

Sunday, March 17, 2019

कुछ नहीं....भावना मिश्रा

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‘कुछ नहीं’
ये दो शब्द नहीं
किसी गहरी नदी के दो पाट हैं
जिनके बीच बाँध रखा है हर औरत ने
अनगिन पीड़ाओं, आँसुओं और त्रास को

इन दो पाटों के बीच वो समेट
लेती है सारे सुख दुःख

बहुत गहरे जब मुस्काती है
या जब असह्य होती है
मन की व्यथा
तब हर सवाल के जवाब में
इतना भर ही
तो कह पाती है
औरत
‘कुछ नहीं’

Bhavna Mishra.jpg
-भावना मिश्र

Saturday, March 16, 2019

उन्हें बुरी लगती हैं......भावना मिश्रा

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उन्हें बुरी लगती हैं आलसी औरतें
मिट्टी के लोंदे-सी पड़ी
उन्हें बुरी लगती हैं
कैंची की तरह जबान चलाती औरतें
जिनके बोलने से घुलने लगता है कानों में पिघला शीशा

उन्हें बुरी लगती हैं
प्रतिरोध करने वाली औरतें
जैसे खो चुकी हों
सारे स्त्रियोचित गुण

छोटे कपड़े पहनने वाली औरतें
भी उन्हें बुरी लगती हैं
कि जिस्म उघाड़ती फिरती हैं

दुनिया भर में
लेकिन..
उन्हें सबसे ज्यादा बुरी लगती हैं वे औरतें
जो उघाड़ कर रख देती हैं अपनी आत्मा को
न सिर्फ घर में
बल्कि घर से बाहर,

देश, समाज और दुनिया के मुंह पर
खोल के रख देती हैं दोमुँही रवायतों की कलई
इसलिए तो दुनिया का कोई भी सभ्य समाज
नहीं निरस्त करता सनी लियोन का वीज़ा
लेकिन तसलीमा का वीज़ा निरस्त होता है हर समाज में

हर देश और समाज से निष्कासित हैं
कितनी ही तसलीमा
-भावना मिश्र
काव्यधरा

Friday, March 15, 2019

कुछ न चाहूँ हे,मुरलीधर...श्वेता सिन्हा

नयन बसे घनश्याम, 
मैं कैसे देखूँ जग संसार।
पलकें झुकाये सबसे छुपाये, 
मैं बैठी घूँघटा डार।

मुख की लाली देखे न कोई, 
छाये लाज अपार।
चुनरी सरकी मैं भी उलझी, 
लट में उंगली डार।

कंगन चुड़ी गिन-गिन हारी, 
बैरी रैन की मार।
जियरा डोले श्याम ही बोले, 
हाय विरहा की रार।

सखिया छेड़े जिया जलाये, 
ले के नाम तुम्हार।
न बूझै क्यों तू निर्मोही, 
देखे न अँसुअन धार।

मन से बाँध गयी नेह की डोरी, 
तोसे प्रीत अपार।
मेरे मोह बंध जाओ न, 
मैं समझाऊँ प्रेम का सार।

कुछ न चाहूँ हे,मुरलीधर, 
कुछ पल साथ अपार।
करने को सर्वस्व समर्पण, 
ले द्वार खड़ी उर हार।

-श्वेता सिन्हा

Thursday, March 14, 2019

पहचान.............डॉ. सुरेन्द्र मीणा

वो गाँव का पगडंडी,
वो पक्षियों का कलरव,
वो चहलकर करते घर के आँगन में नन्हें-से मेमने...
खुले आसमान में सितारों के बीच,

तन्हा चाँद आज भी उदास-सा है
जब से मैंनें द्खा है उसै गाँव में,
घर के चबूतरे पर खड़े होकर....
गाँव का सोंधी खुशबू का अहसास,
पता नहीं, कहां.. खो-सा गया है?

सब कुछ पीछे छूट सा गया है आज...
गाँव का अहसास दम तोड़ने लगा है अब,
गाँव की पक्की सड़कें...पक्के मकान,
मोबाईल के गगनचुम्बी टॉवर,
मोटरसाइकिलों के धओं से अब,
गांव का पहचान ही बदल-सी गई है आज....।
-डॉ. सुरेन्द्र मीणा (मधुमिता से)

Wednesday, March 13, 2019

हरश्रृंगारी महक...अलका गुप्ता

तन - मन भिगो रही आज ...
यादों की हरश्रृंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।
-अलका गुप्ता

Tuesday, March 12, 2019

स्‍पर्श प्रेम का.........ज्योति जैन

प्रेम का प्रथम स्‍पर्श
उतना ही पावन व निर्मल
जैसे कुएं का
बकुल-
तपती धूप में प्रदान करता
शीतलता-
सौंधी महक लिए।
जब मिलता तो लगे
बहुत कम
लेकिन
बढते वक्‍त के साथ
भर जाता लबालब
परिपूर्ण हो जाता कुआं
हमेशा प्‍यास बुझाने के लिए
कभी न कम होने के लिए।
प्रेम का प्रथम स्‍पर्श
मानो कुएं का बकुल।

-ज्योति जैन

Monday, March 11, 2019

मौत से जो निक़ाह कर बैठे......डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी

खूब सूरत गुनाह कर बैठे ।
हुस्न पर वो निगाह कर बैठे ।।

आप गुजरे गली से जब उनकी ।
सारी बस्ती तबाह कर बैठे ।।

कुछ असर हो गया जमाने का ।
ज़ुल्फ़ वो भी सियाह कर बैठे ।।

देख कर जो गए थे गुलशन को ।
आज फूलों की चाह कर बैठे ।।

जख्म दिल का अभी हरा है क्या ।
आप फिर क्यों कराह कर बैठे ।।

किस तरह से जलाएं मेरा घर ।
लोग मुझसे सलाह कर बैठे ।।

लोग नफरत की इस सियासत में ।
आपको बादशाह कर बैठे ।।

दुश्मनी जब चले निभाने हम ।
वो हमें खैरख्वाह कर बैठे ।।

उस जमीं का उदास मंजर था ।
हम जिसे ईदगाह कर बैठे ।।

वो तो सरकार की सियासत थी ।
आप क्यूँ आत्मदाह कर बैठे ।।

अब तस्सल्ली उन्हें मुबारक़ हो ।
मुल्क जो कत्लगाह कर बैठे ।।

उन शहीदों को है सलाम मेरा ।
मौत से जो निक़ाह कर बैठे ।।

सिर्फ पहुँचे वही खुदा तक हैं ।
इश्क़ जो बेपनाह कर बैठे ।।

-डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी 
मौलिक अप्रकाशित

Sunday, March 10, 2019

खेल जिन्दगी का........आशीष दुबे

वैसे तो चाँद तारों से अपनी शनासाई है।
क्या करें किस्मत में लेकिन रात की स्याही है।

आइना थे और दोस्ती हो गयी एक संग से।
उसकी आदत की वजह चोट हमने खाई है।

रात की यूँ गोद में लेटे तो रहे रात भर।
कुछ बात थी या याद थी जो नींद नहीं आई है।

बाद तेरे रह गया कोई न जीने का सबब।
भीड़ या खल्वत कहीं भी सिर्फ अब तनहाई है।

काट कर चला गया और आज भी अंजान है ।
मुस्कराकर पूछता ये शाख क्यों मुरझाई है।

खेल जिंदगी का, या शतरंज की चाल हैं।
वक्त ने अपनी बिसात तकदीर पर बिछाई है।।

-आशीष दुबे 
इटावा उप्र

शानसाई -परिचय, संग- पत्थर 
सबब-कारण , खल्वत-अकेलापन