Friday, May 3, 2013

प्यास का मारा करता क्या................... श़ायर ज़नाब अन्सार कम्बरी

धूप का जंगल, नंगे पावों, इक बंजारा करता क्या
रेत के दरिया, रेत के झरने, प्यास का मारा करता क्या

बादल-बादल आग लगी थी, छाया तरसे छाया को
पत्ता-पत्ता सूख चुका था, पेड़ बेचारा करता क्या

सब उसके आँगन में अपनी, राम कहानी कहते थे
बोल नहीं सकता था कुछ भी, घर-चौबारा करता क्या

तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे
हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या

ये है तेरी, और न मेरी, दुनिया आनी-जानी है
तेरा-मेरा, इसका-उसका फिर बँटवारा करता क्या

टूट गये जब बंधन सारे और किनारे छूट गये
बींच भँवर में मैंने उसका नाम पुकारा करता क्या 
-श़ायर ज़नाब अन्सार कम्बरी

5 comments:

  1. तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे
    हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या
    ------------------------
    अन्सार कम्बरी की बात ही जुदा है ....लाजवाब लिखते हैं आप जनाब ..

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  2. बहुत बढ़िया....
    शुक्रिया यशोदा..

    सस्नेह
    अनु

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