अभी-अभी जो चली हवा,
एक सर्द सा एहसास हुआ,..
दिल को करार सा मिला,
दर्द जाने कंहा गुम हुआ,..
गालों पे लुढ़क आई बूंदे,
आंखो को जाने क्या हुआ,..
मेरे लब जरा सा हंस दिए,
बेचैनियों को विदा किया,..
सब सोचने लगे मुझे देखकर,
अचानक मुझे ये क्या हुआ,..
नम थी मेरी आंखे भले ही,
पर खुशी का अहसास हुआ,..
कोई आकर न मुझसे मिला,
न बात,न ही कोई वादा हुआ,..
पर ये हवांए यूंही नही चली,
बेसबब तो कुछ भी न हुआ,..
जिसके लिए तरसी ये आंखे,
मैं जानती हूं "वो" आ गया,
---प्रीति सुराना
अभी-अभी जो चली हवा,
एक सर्द सा एहसास हुआ,..
दिल को करार सा मिला,
दर्द जाने कंहा गुम हुआ,..
गालों पे लुढ़क आई बूंदे,
आंखो को जाने क्या हुआ,..
मेरे लब जरा सा हंस दिए,
बेचैनियों को विदा किया,..
सब सोचने लगे मुझे देखकर,
अचानक मुझे ये क्या हुआ,..
नम थी मेरी आंखे भले ही,
पर खुशी का अहसास हुआ,..
कोई आकर न मुझसे मिला,
न बात,न ही कोई वादा हुआ,..
पर ये हवांए यूंही नही चली,
बेसबब तो कुछ भी न हुआ,..
जिसके लिए तरसी ये आंखे,
मैं जानती हूं "वो" आ गया,
एक सर्द सा एहसास हुआ,..
दिल को करार सा मिला,
दर्द जाने कंहा गुम हुआ,..
गालों पे लुढ़क आई बूंदे,
आंखो को जाने क्या हुआ,..
मेरे लब जरा सा हंस दिए,
बेचैनियों को विदा किया,..
सब सोचने लगे मुझे देखकर,
अचानक मुझे ये क्या हुआ,..
नम थी मेरी आंखे भले ही,
पर खुशी का अहसास हुआ,..
कोई आकर न मुझसे मिला,
न बात,न ही कोई वादा हुआ,..
पर ये हवांए यूंही नही चली,
बेसबब तो कुछ भी न हुआ,..
जिसके लिए तरसी ये आंखे,
मैं जानती हूं "वो" आ गया,
---प्रीति सुराना
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आपका आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteपर ये हवांए यूंही नही चली,
ReplyDeleteबेसबब तो कुछ भी न हुआ,..
...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
खुबसूरत !
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