बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी-जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा, फुकनी-जैसी माँ
बान की खुरीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी-जैसी माँ
चिडि़यों की चहकार में गूँज़े
राधा-मोहन, अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी-जैसी माँ
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी-सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी -जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा, माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की-जैसी माँ।
--निंदा फाज़ली
पढ़िये और सुनिये भी..........
बहुत बढ़िया रचना पोस्ट की है आपने...!
ReplyDeleteमाँ के रुप अनेक..सुन्दर गीत..आभार यशोदा जी
ReplyDeletewaaaaaaaaah bhot khub waaaah
ReplyDeleteखुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकही मेरे बारे में तो नहीं था (*_*) :P
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुंदर अभिव्यति.......!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. निदा साब को खुद की आवाज़ में आमने सामने सुनने भी बहुत शानदार अनुभव होता है. उनके ख़याल अपने पिता के बारे में भी बहुत बदले हैं.
ReplyDeleteमाँ के लिए जितना लिखा जाए उतना कम है ।बढ़ियाँ
ReplyDeleteइतनी खूबसूरत गज़ल ...
ReplyDeleteसच मिएँ माँ सामने आ जाती है ...
निदा फाज़ली जी की यह रचना " खट्टी चटनी-जैसी माँ" जिंतनी बार भी पढो हर बार नयी ही लगती हैं ...आपने आज ब्लॉग पर पढने का अवसर दिया इसके लिए धन्यवाद ..............
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