सिसकते आब में किस की सदा है
कोई दरिया की तह में रो रहा है
सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा
ख़ुदा चारो तरफ़ बिखरा हुआ है
समेटो और सीने में छुपा लो
ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है
पके गेंहू की ख़ुश्बू चीखती है
बदन अपना सुनेहरा हो चला है
हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है
समन्दर कैसा बूढ़ा देवता है
हमारी शाख़ का नौ-ख़ेज़ पत्ता
हवा के होंठ अक्सर चूमता है
मुझे उन नीली आँखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है
-डॉ. बशीर बद्र
कोई दरिया की तह में रो रहा है
सवेरे मेरी इन आँखों ने देखा
ख़ुदा चारो तरफ़ बिखरा हुआ है
समेटो और सीने में छुपा लो
ये सन्नाटा बहुत फैला हुआ है
पके गेंहू की ख़ुश्बू चीखती है
बदन अपना सुनेहरा हो चला है
हक़ीक़त सुर्ख़ मछली जानती है
समन्दर कैसा बूढ़ा देवता है
हमारी शाख़ का नौ-ख़ेज़ पत्ता
हवा के होंठ अक्सर चूमता है
मुझे उन नीली आँखों ने बताया
तुम्हारा नाम पानी पर लिखा है
-डॉ. बशीर बद्र
मुझे उन नीली आँखों ने बताया
ReplyDeleteतुम्हारा नाम पानी पर लिखा है
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बेहतरीन.. उम्दा...
बहुत उम्दा,लाजबाब प्रस्तुति,,आभार यशोदा जी
ReplyDeleteआप भी फालो करे तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,,,,
Recent post: ओ प्यारी लली,
मुझे उन नीली आँखों ने बताया
ReplyDeleteतुम्हारा नाम पानी पर लिखा है
वाह ... बेहतरीन
wow
ReplyDeletegazab ,bahut khoob
ReplyDeleteबहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति .... वाह
ReplyDeleteदो शे'र आपके लिये...
यारों ने जिस पे अपनी दुकानें सजाई है
ख़ुश्बू बता रही है हमारी ज़मीन है
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चमकती है कहीं सदियों में आंसुओं से ज़मीं
ग़ज़ल के शे'र कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं