कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता
---डॉ.बशीर बद्र
बहुत लाजवाब गजलें, मुझे बद्र साहब की गजलें बहुत पसंद है
ReplyDeleteबढ़िया....
ReplyDeleteबशीर बद्र साहब का तो जवाब नहीं...
शुक्रिया यशोदा.
सस्नेह
अनु
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
ReplyDeleteयूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
बेवफाई की मजबूरी
मेरे समझ में नहीं आती
छोटी मुंह बड़ी बात
मैंने लिखने की हिमाकत की
बशीर जी को पढ़वाने का आभार .... बहुत ही बढि़या प्रस्तुति
ReplyDeleteलाजवाब!!!
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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बहुत सुन्दर....मेरी नई पोस्ट.."ज़रा अज़मां कर देखिए"
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteकुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
बहुत सुन्दर..
प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteरात का इंतज़ार कौन करे
ReplyDeleteआज कल दिन में क्या नहीं होता-----
सहजता से बहुत कुछ कहती रचना
आभार
आदरणीय आपकी यह अप्रतिम कविता 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
ReplyDeleteकृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारें,आपकी प्रतिक्रिया का सादर स्वागत् है।
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
ReplyDeleteयूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
...वाह! लाज़वाब ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आभार...
बशीर साहब की लाजवाब गज़ल ... मज़ा आ गया ...
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